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________________ ८८ : एसो पंच णमोक्कारो ही खोज लिये थे। एक छोटी-सी चर्चा करूं। जैन आगमों में २८ लब्धियों की चर्चा है। उनमें एक है—संभिन्नस्रोतोलब्धि। जिस व्यक्ति को वह लब्धि उपलब्ध हो जाती है, वह व्यक्ति किसी भी इन्द्रिय से किसी भी इन्द्रिय का काम ले सकता है। आंख से देख सकता है, आंख से सुन सकता है, आंख से घ्राण-वोध कर सकता है। इसी प्रकार ये सारे काम कान या जीभ से कर सकता है। एक इन्द्रिय का संवेदन दूसरी इन्द्रिय का संवेदन पकड़ सकता है। अभी-अभी मैंने पढ़ा है कि आस्ट्रेलिया के एक वैज्ञानिक डॉ० बेरी रिचर्डसन ने एक एलेक्ट्रोनिक यंत्र का आविष्कार किया है, जिससे बहरा व्यक्ति त्वचा से सुन सकता है। यह संभिन्नस्रोतोलब्धि का एक उदाहरण है। इस लब्धि की जो प्राचीन व्याख्या थी, वह केवल ग्रन्थों तक ही सीमित रह गई थी, हमारे अनुभव से परे हो गई थी, उसका व्याख्या-सूत्र हमें वैज्ञानिक स्तर पर आज उपलब्ध हो गया। वैज्ञानिकों ने इस नये यंत्र की उपयोगिता के विषय में कहा कि इस यंत्र का विकास होने पर दुनिया में कोई बहरा नहीं रहेगा। जैसे-जैसे विश्व के रहस्यों में हम गहरी डुबकियां लेते हैं, वैसे-वैसे नये-नये रहस्य हमारे सामने उद्घाटित होते हैं और प्रकृति के, पौद्गलिक जगत् के सारे नियम हमारी ज्ञान की सीमा में आ जाते हैं। __एक प्रश्न है कि नमस्कार महामंत्र की आराधना के साथ वर्णों का समायोजन क्यों ? रंग का इसके साथ क्या सम्बन्ध है ? पांच पदों के क्रमशः पांच वर्ण हैं-श्वेत, लाल, पीला, नीला या हरा और कस्तूरी जैसा काला। एक-एक पद का एक-एक रंग। यह क्यों ? __ पहले यह चर्चा कर चुके हैं कि नमस्कार महामंत्र की आराधना अनेक रूपों में की जाती है। उसकी आराधना केवल पांच पदों के रूप में भी की जाती है, बीजाक्षरों के साथ भी की जाती है; एक-एक पद की एक-एक चैतन्य-केन्द्र में भी उपासना की जाती है और रंगों के साथ भी की जाती अध्यात्म साधना का उद्देश्य है----आत्म-जागरण। आत्म जागरण का अर्थ है-चैतन्य का जागरण, आनन्द का जागरण, शक्ति का जागरण, अपने परमात्म स्वरूप का जागरण, अर्हत् स्वरूप का जागरण। आत्मा का जागरण—यह बहुत व्यापक शब्द है। इसकी अनेक शाखाएं हैं। अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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