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________________ ८६ : एसो पंच णमोक्कारो ले कि आत्मा का जागरण हो रहा है, चैतन्यकेन्द्रों की सारी शक्तियां पूरे शरीर में अवतरित हो रही हैं। जब मन स्वस्थ, चेतना जागृत; आघात और प्रतिघात का प्रभाव समाप्त हो जाता है तब साधक सभी प्रकार की परिस्थितियों में संतुलित रहेगा। परिस्थितियों का प्रभाव उस तक पहुंचेगा ही नहीं। समस्या अपने स्थान पर खड़ी रहेगी, व्यक्ति का स्पर्श नहीं कर पाएगी। उस व्यक्ति को यह स्पष्ट दर्शन हो जाएगा कि समस्या यह है और समाधान यह है। समस्याओं से आक्रान्त होने वाले व्यक्ति, समस्याओं के नीचे दब जाने वाले व्यक्ति, समस्याओं का सही समाधान नहीं पा सकते। समस्याओं का समाधान वे ही व्यक्ति पा सकते हैं, जो समस्याओं को तीसरे व्यक्ति को भांति सामने खड़ा देखते हैं। यह रहा मैं, यह है मेरा मन और यह समस्या। समस्याएं दरवाजे के बाहर खड़ी हैं, मैं भीतर हूं। इनका समाधान यह है। ऐसे व्यक्ति ही समस्याओं का समाधान दे सकते हैं। चोर और डकैत को घर में घुसने दें और चोरी, डकैती न हो यह कैसे संभव हो सकता है ? समस्याओं से मन आक्रान्त हो और वह अस्वस्थ न हो, यह कैसे संभव हो सकता है ? हम समस्याओं से कहें-'आओ, यह रहा मन और यह रही मन की सारी संपदा । तुम उस पर छा जाओ।' ऐसी निमंत्रणा में समाधान कैसे संभव हो सकता है ? समस्याओं का समाधान तभी संभव लगता है जब हम उनको मन के भीतर प्रवेश न करने दें। समस्या समस्या के स्थान पर खड़ी रहे तो समाधान प्राप्त हो जाता है। समस्या समस्या के स्थान पर, मन मन के स्थान पर और समाधान समाधान के स्थान पर। यह तभी संभव है जब हमारे चैतन्यकेन्द्र जागृत हो जाएं, सक्रिय हो जाएं। प्रेक्षा-ध्यान के द्वारा यह संभव है। चैतन्यकेन्द्रों को जागृत कर हम मन पर ऐसा कवच तैयार कर दें, जिससे बाहर का कुछ भी प्रवेश न कर सके। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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