SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ : एसो पंच णमोक्कारो एक महीने में, किसी को दो-चार महीनों में और किसी को वर्ष-भर बाद ही सफलता मिले, किसी व्यक्ति को पूरी शक्ति के साथ मंत्र का अनुष्ठान करने पर ही सफलता मिलती है और किसी को कम शक्ति लगाने पर भी सफलता मिल जाती है। इसके अनेक कारण हैं। किन्तु प्रत्येक मंत्र-साधक में यह आत्मविश्वास और संकल्प होना ही चाहिए कि मैं अपने अनुष्ठान में अवश्य ही सफल होऊंगा।' ___कुछ व्यक्ति ऐसा सोचते हैं कि यहां मृग बहुत हैं, बीज क्यों बोएं ? मृग खेती खा जाएंगे। यहां चूहे बहुत हैं, बीज क्यों बोएं ? चूहे खेती खा जाएंगे। चोर बहुत हैं, धन क्यों कमाएं ? चोर चोरी कर ले जाएंगे। जो व्यक्ति इन विकल्पों और संदेहों के वशवर्ती होकर खेती नहीं करते, व्यापार नहीं करते, वे कुछ भी उपलब्ध नहीं कर पाते। उन्होंने पहले से ही अनुपलब्धि का मार्ग चुन रखा है। खेती करने वाला पूरे आत्मविश्वास के साथ खेती करता है कि अनाज अवश्य ही होगा। कभी अनाज न भी हो, पर उसका आत्मविश्वास यही रहता है कि अनाज होगा। असफलता कोई कठिनाई नहीं है, कठिनाई है आत्मविश्वास का न होना। असफलता सदा नहीं होती। आत्मविश्वास होता है तो असफलता सफलता में परिवर्तित भी हो सकती है | जो एक बार असफल रहता है वह दूसरी बार सफल भी हो सकता है। किन्तु जो संदेहो के जाल में फंसकर सफलता की ओर कदम ही नहीं बढ़ाता, वह जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता। सफलता की मूल कुंजी है----आत्मविश्वास । जिस व्यक्ति में गहरा आत्मविश्वास होता है वह व्यक्ति अपनी आराधाना में सफल हो जाता है। ___मंत्र का तीसरा तत्त्व है—साधना। शब्द भी हैं, आत्मविश्वास भी है किन्तु साधना के अभाव में मंत्र फलदायी नहीं हो सकता। जब तक मंत्र-साधक आरोहण करते-करते मंत्र को प्राणमय न बना दे, तब तक वह सतत साधना करता रहे। वह निरंतरता को न तोड़े। जब तक वह हिमालय के उच्चतम शिखर पर न पहुंच जाए तब तक वह आरोहण के क्रम को न छोड़े, उसमें शिथिलता न आने दे। मन शिथिल होते ही आरोहण का प्रयत्न छूट जाता है। तब सफल होने की बात ही प्राप्त नहीं होती। साधना में निरंतरता और दीर्घकालिता—दोनों अपेक्षित हैं। अभ्यास को प्रतिदिन दोहराना चाहिए। आज आपने ऊर्जा का एक वातावरण तैयार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy