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नमस्कार महामंत्र का महत्त्व
प्रस्तुत महामंत्र समग्र जैन शासन के समान रूप से प्रतिष्ठा प्राप्त है । यही इसकी प्राचीनता का हेतु है । यदि यह श्वेताम्बर और दिगम्बर का अन्तर होने के बाद निर्मित होता, तो संभव है कि समग्र जैन शासन में इसे इतनी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं होती। किसी एक सम्प्रदाय में इसका महत्त्व होता, दूसरे में इतना महत्त्व नहीं होता। यह मंत्राधिराज के रूप में प्रतिष्ठित नहीं होता । लगभग डेढ़ हजार वर्ष की अवधि में इस महामंत्र पर विपुल साहित्य रचा गया। इसके सहारे अनेक मंत्रों का विकास हुआ और इसकी स्तुति में अनेक काव्य रचे गए। यह जैनत्व का प्रतीक बना हुआ है । जो जैन होता है, वह कम से कम महामंत्र का अवश्य पाठ करता है। वह कैसा जैन, जो महामंत्र को नहीं जानता। जो नमस्कार महामंत्र को धारण करता है, वह श्रावक है । उसे परम बन्धु मानना चाहिए । इस दृष्टि से हम नमस्कार महामंत्र की व्यापकता का मूल्यांकन कर सकते हैं ।
नमस्कार महामंत्र, जप और ध्यान
नमस्कार मंत्र पर जप और ध्यान की अनेक पद्धतियां प्रचलित हैं। उसके अनेक प्रयोग प्रस्तुत किए गए हैं। संकल्पशक्ति, इच्छाशक्ति और मन की शक्ति को विकसित करने के लिए मंत्र की साधना की जाती है । उसकी साधना के द्वारा जब प्राण-शक्ति जागृत होती है, तब उसके प्रयोग दो दिशाओं में होते हैं। एक दिशा है सिद्धि की और दूसरी है आन्तरिक व्यक्तित्व के परिवर्तन की । तैजस् शरीर (बायो एलेक्ट्रीसिटी) का विकास होने पर सम्मोहन, वशीकरण, वचन-सिद्धि, रोग निवारण, विचार-संप्रेषण (टेलीपैथी) आदि अनेक सिद्धियां उपलब्ध होती हैं। मंत्र के जप से ऊर्जा बढ़ती है । इसका उपयोग यदि अन्तर्मुखी होने और कषाय को कम करने के लिए किया जाए तो आन्तरिक व्यक्तित्व बदलने लगता है । नमस्कार महामंत्र में चमत्कार और आत्म-शोधन
- दोनों प्रकार के शक्ति - बीज निहित हैं। आत्मशोधन की दृष्टि से इसका जप किया जाता है तब इसके साथ बीजाक्षरों का योग नहीं किया जाता । सिद्धि की दृष्टि से जब इसका जप किया जाता है, तब इसके साथ बीजाक्षरों का योग किया जाता है । बीजाक्षररहित नमस्कार महामंत्र के अनेक मंत्र बनते हैं-
9. पैंतीस अक्षर का मंत्र - समग्र नमस्कार मंत्र ।
२. सप्ताक्षरी मंत्र - १.
उवज्झायाणं ।
नमो अरहंताणं, २. नमो आयरियाणं, ३. नमो
३. पंचाक्षरी मंत्र - नमो सिद्धाणं ।
४. नवाक्षरी मंत्र - नमो लोए सव्वसाहूणं ।
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