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________________ इस महामंत्र का खण्ड रूप में जप किया जाता है जैसे १. अरहंताणं, २. सिद्धाणं, ३. आयरियाणं, ४. उवज्झायाणं, ५. साहूणं । ये सब विभिन्न आन्तरिक शक्तियों को जागृत करने वाले अनुभूत प्रयोग हैं। नमस्कार महामंत्र के मंत्र शास्त्रीय संक्षिप्त रूप भी मिलते हैं । जैसे--- १. असि आ उ सा ( पंचाक्षरी मंत्र ) । २. अरहंत सिद्ध आयरिअ उवज्झाय साहू ( षोडशाक्षरी मंत्र ) । बीजाक्षरों के साथ नमस्कार महामंत्र के सैकड़ों प्रयोग मिलते हैं। अनेक आचार्यो ने इस महामंत्र पर अनेक कल्प-ग्रन्थ और मंत्र शास्त्रीय ग्रन्थ लिखे हैं । ग्रह - शान्ति और विघ्न- शान्ति, कायोत्सर्ग-पद्धति और वज्रपंजर आदि विभिन्न दिशाओं में इस महामंत्र का प्रयोग किया है। जैन परंपरा में मंत्र - शास्त्र के अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हैं, किन्तु नमस्कार महामंत्र का जितना व्यापक प्रयोग किया गया, उतना अन्य किसी भी मंत्र का नहीं किया गया। नमस्कार महामंत्र के जैसे जप के प्रयोग मिलते हैं, वैसे ही इसके ध्यान के प्रयोग भी उपलब्ध होते हैं । 'नवपद ध्यान' जैन परम्परा में बहुत प्रसिद्ध है । चैतन्य केन्द्रों पर भी नमस्कार मंत्र का ध्यान किया जाता है । पुरुषाकार ध्यान करने की पद्धति भी रही है । इस प्रकार नमस्कार महामंत्र के सर्व दिशाव्यापी प्रयोग किए गए। उनकी सफलता के आधार पर ही नमस्कार महामंत्र को 'सव्व पावप्पणासणी' कहा गया । इस महामंत्र पर विशाल साहित्य प्रकाश में आया है। फिर भी ध्वनि - विज्ञान के प्रयोग और परीक्षणों के आधार पर इसके मूल्यांकन की आज भी अपेक्षा है । इसकी उच्चारण-विधि और उससे उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगों के बारे में हमारी जानकारी अपर्याप्त है। इसलिए इस विषय को अभी मैं अनुसंधान और गवेषणा के अन्तर्गत ही मानता हूं। मैंने बीकानेर के प्रेक्षाध्यान-शिविर में नमस्कार महामंत्र के प्रयोग कराए और वे प्रयोग काफी सफल रहे। मैं उनको सफल इस दृष्टि से मानता हूं कि उनकी प्रतिक्रिया तत्काल प्रकट होती थी । ध्यान करने वाले को कभी प्रबल गर्मी का अनुभव करना पड़ता, तो कभी वे सर्दी का अनुभव करने लगते । प्रत्येक पद की चतुष्पाद ध्यान-पद्धति में नए-नए अनुभव हुए और स्वभाव परिवर्तन के उदाहरण सामने आए। मुझे लगा कि नमस्कार महामंत्र का उपयोग आत्मानुभूति के लिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण है । इसी दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक में उसकी चर्चा हुई है । साथ-साथ शक्ति जागरण की चर्चा भी है । मेरे महान् गुरु ने मुझे अध्यात्म के प्रयोग की दिशा में प्रवृत्त किया। शिविर काल में पूज्य गुरुदेव स्वयं उपस्थित रहते हैं और भाषा को अपनी टिप्पणी से और अधिक प्राणवान् बना देते हैं। क्षेत्रीय दूरी के कारण यह अवसर नहीं मिल सका, फिर भी पूज्य गुरुदेव की आत्मा की सन्निधि प्रस्तुत पुस्तक में सर्वत्र है । प्रस्तुत पुस्तक की पाण्डुलिपि तैयार करने के श्रमसाध्य कार्य में तथा उसके संपादन में मुनि दुलहराजजी ने उत्साहपूर्ण कार्य किया है। इसके लिए उन्हें साधुवाद देता हूं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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