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________________ 81 कर्म-फल भोगने की कला एकदम दुःखी बन जाता है। क्या ऐसा हो सकता है, असद् कर्म का दुःख भोगे और आदमी दुःखी न बने? कहा गया-ऐसा हो सकता है और यही धर्म की कला है। यह एक ऐसी कला है, जिसे जानने पर ऐसी स्थिति बन सकती है-कष्ट आने पर भी आदमी दुःखी न बने, असद् कर्म का वेदन करने पर भी आदमी दुःखी न हो। चक्रवर्ती का सौंदर्य चक्रवर्ती सनत्कुमार की घटना प्रसिद्ध है। वे बहुत ही नाटकीय ढंग से मुनि बने। उन्हें अपने सौन्दर्य पर बड़ा अहंकार था। वे गर्व से कहा करते थे-इस दुनियां में मेरे से अधिक सुन्दर दूसरा कोई नहीं है। सुन्दरता का भी अहंकार होता है। वस्तुतः शरीर के भीतर मल ही मल जमा हआ है। यह जानते हए भी व्यक्ति सन्दरता के अहंकार में डबा रहता है। चक्रवर्ती के सौन्दर्य की महिमा पूरे संसार में फैल गई। कहा जाता है-एक देव बूढ़े ब्राह्मण का रूप बनाकर चक्रवर्ती का सौन्दर्य देखने आया। उसने चौकीदार से कहा-मैं चक्रवर्ती के दर्शन करना चाहता हूँ। चौकीदार ने जवाब दिया-अभी व्यक्तिगत समय है, चक्रवर्ती के दर्शन नहीं हो सकते। उनके दर्शन कल राज्यसभा में होंगे। ब्राह्मण बोला-तुम मेरी अभिलाषा-पूर्ति में सहायक बनो, चक्रवर्ती तक मेरी यह बात पहुंचा दो-आपके दर्शनों की आकांक्षा लिए एक ब्राह्मण जवानी अवस्था में दूर देश से चला था और चलते-चलते अब बूढ़ा हो गया है। पता नहीं, वह जिएगा या नहीं। अहंकार की भाषा चौकीदार का मन पसीज गया। उसने ब्राह्मण की प्रार्थना चक्रवर्ती तक पहुंचा दी। चक्रवर्ती का मन भी करुणा से भर गया। उन्होंने तत्काल ब्राह्मण को बला भेजा। ब्राह्मण ने चक्रवर्ती के कक्ष में प्रवेश किया। वह चक्रवर्ती के सौन्दर्य को देखते ही स्तब्ध रह गया। ब्राह्मण एकटक चक्रवर्ती को देखने लगा। चक्रवर्ती का सोया अहंकार जाग उठा। सनत्कुमार ने ब्राह्मण से कहा- अरे! तुम मेरे सौन्दर्य को अभी क्या देखते हो? कल जब मैं स्नान कर, राजसी वस्त्र और अलंकार पहन राज्यसभा में रत्नजटित सिंहासन पर बैठू तब मेरा सौन्दर्य देखना, तुम्हारा मन तृप्त हो जाएगा। चक्रवर्ती के निर्देश से ब्राह्मण के ठहरने आदि की समुचित व्यवस्था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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