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________________ समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा 80 जीवन के दो घटक तत्त्व हमारे जीवन के दो मुख्य घटक हैं - सुख और दुःख । आदमी सुख चाहता है, दुःख नहीं चाहता । सरस जीवन चाहता है, नीरस जीवन नहीं चाहता। हमारे सामने प्रश्न है- क्या किसी व्यक्ति ने ऐसा जीवन जिया है, जिसमें जीवन में सुख ही सुख आया हो, दुःख आया ही नहीं हो ? शायद दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा। एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा, जिसने जीवन में केवल सुख ही सुख भोगा हो, दुःख का अनुभव नहीं किया हो। ऐसा भी व्यक्ति नहीं मिलेगा, जिसके जीवन में केवल दुःख ही दुःख आए हों, सुख न आया हो। प्रश्न हो सकता है - व्यक्ति सुख ही सुख चाहता है, फिर दुःख क्यों आता है ? इस प्रश्न का सीधा-सा उत्तर है - जो सुख चाहता है, वह दुःख भी चाहता है। यह निश्चित तथ्य है, एक के बिना दूसरा होता ही नहीं है। प्रश्न बन्धन से मुक्ति पाने का प्रश्न है - बन्धन को कैसे तोड़ा जा सकता है? आचार्य ने उत्तर दिया - जो व्यक्ति कर्म का फल भोगते समय, पुण्य का फल भोगते समय, सुखी नहीं बनता और पाप का फल भोगते समय दुःखी नहीं बनता, वह इस बन्धन की श्रृंखला को तोड़ने की दिशा उद्घाटित कर लेता है । सुख के समय सुखी न बनना और दुःख के समय दुःखी न बनना, बन्धन से मुक्ति पाने की कला है और यही धर्म की कला है। जब दुःख का विपाक और दुःख का फल मिले तब व्यक्ति दुःखी न बने, यह बात अच्छी लग सकती है किंतु सुख का फल मिले और व्यक्ति सुखी न बने, यह बात अच्छी नहीं लगती । प्रत्येक आदमी सुखी बनना चाहता है, सुखी जीवन जीना चाहता है । सुखी जीवन चाहने वाले व्यक्ति को दुःखी जीवन जीने की तैयारी भी रखनी चाहिए । दुःख और वेदन हम गहरे में उतर कर देखें - असद् कर्म का फल मिलता है, आदमी दुःखी बन जाता है। शरीर में बीमारी है । असातवेदनीय कर्म का उदय हुआ और आदमी दुःखी बन जाएगा। बीमारी आने पर मनः संताप हो जाता है, दुःख की रेखाएं खिंच जाती हैं, समस्याएं उभर आती हैं। यह क्या है ? लीवर की बीमारी, कैंसर की बीमारी, हार्ट की बीमारी आदि न जाने कितने प्रकार की भयंकर बीमारियां हैं। उनसे पीड़ित होने पर मन को भारी आघात लगता है। जब बीमारीजन्य वेदना होती है, आदमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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