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समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा को विशुद्ध रखे। अपनी भावधारा, अपनी विचारधारा को पवित्र बनाये रखे किन्त वह व्यवहार की बातों में उलझ गया। उसने दूसरों पर सारा दोषारोपण करना शरू कर दिया। इस स्थिति में निश्चयनय का विकास नहीं हो सकता।
नीतिशास्त्र में कहा गया-जो पिता अपने पुत्र को योग्य बना देता है, वह बहुत अच्छा है और जो पिता अपने पुत्र के लिए बहुत सारी संपत्ति छोड़ देता है, पुत्र को योग्य नहीं बनाता, वह अपने लड़के का सबसे बड़ा शत्रु है। चिंतन का कोण
नीति-शास्त्र का प्रसिद्ध श्लोक हैमाता शत्रुः पिता वैरी, येन बालो न पाठितः।
नीति शास्त्र में कहा जाता है-वह मां शत्रु है, पिता दुश्मन है जिसने अपने बेटे को नहीं पढ़ाया, योग्य नहीं बनाया, तैयार नहीं किया। यह बहुत सच बात है। जो लड़के को तैयार नहीं करते, केवल धन दे देते हैं, वस्तुतः वे उसके साथ दुश्मनी का भाव बरतते हैं।
विदेशों में लडके की तैयारी पर बहत ध्यान दिया जाता है। अपनी संपत्ति अपने लड़के को नहीं देते हैं। ऐसी प्रथा है-नौकर के नाम वसीयत लिख देते हैं, ड्राईवर के नाम लिख देते हैं। अपने लड़कों के नाम वसीयत लिखने की प्रथा शायद बहत कम होगी। पत्र भी अपेक्षा नहीं रखते कि पिता की संपत्ति हमें मिले। हिन्दस्तान में बहुत सारे पत्र निकम्मे हो जाते हैं। वे सोचते हैं, धन तो मिल ही जाएगा। यह चिंतन
और दृष्टि आरोपण की प्रक्रिया में से निकलती है। महत्त्वपूर्ण बात
व्यवहारनय और निश्चयनय सत्य की खोज की दो दृष्टियां हैं और दोनों सत्य हैं किन्तु हमें व्यवहार की सचाई को अन्तिम सचाई नहीं मानना चाहिए। हमें व्यवहार से निश्चयनय की सचाई तक जाना है। यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है। इस पर आचार्य कुन्दकुन्द ने जो बल दिया, उसे मैं बहुत महत्त्वपूर्ण मानता हूं। अगर निश्चयनय पर इतना बल नहीं होता तो हम धर्म के मामले में स्थल बन जाते, केवल ऊपर की बातों में अटक जाते। एक लौकिक आदमी, धर्म को न मानने वाला यह कहता है-उसने For Private & Personal Use Only
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