________________
75
सत्य की खोज के दो दृष्टिकोण मेरा बिगाड़ कर दिया तो बात समझ में आ सकती है पर एक धार्मिक
और आध्यात्मिक आदमी यह बात कहता है तो समझने में कठिनाई होती है। संतुलन बनाएं
हम अपने आपको तौलें, हमारी कौनसी दृष्टि जागी है? व्यवहार की दृष्टि जागी है या निश्चय की दृष्टि जागी है? जो महावीर का शिष्य है, उसमें निश्चयनय की दृष्टि जागनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति सोचे कि मेरा अध्यवसाय कैसा रहा है? जो व्यक्ति अपने अध्यवसाय तक चला जाता है, वह दूसरों पर आरोपण नहीं करता। जो अपने कार्य का बीज अपने आप में ही खोजने का प्रयत्न करता है, वह बच जाता है, दूसरों में कमी देखने वाला कभी बच नहीं पाता।
अपेक्षा है-हम जीवन में संतुलन बनाएं। एक पांव से न चलें, एक आंख से न देखें, एक ही हाथ को ऊपर न उठाएं। दो हाथ, दो पांव, दो आंख, दो कान बराबर काम करे तो व्यवहार और निश्चयनय की सचाई का संतुलन बन जाए। यह संतलन ही हमारा सरक्षा कवच बनेगा, विकास की दिशा को स्पष्ट करेगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org