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समयसार : निश्चय और व्यवहार का यात्रा
जरूरी है जागरूकता
पशु बनने का जो अध्यवसाय है, वह पशु योनि का कारण बनता है। जब धोखाधड़ी का अध्यवसाय होता है, तोल-माप में झठ-कपट होता है तब व्यक्ति तिर्यंच योनि में जाने योग्य कर्मों का अर्जन करता है। प्रश्न है तिर्यंच किसने बनाया? कर्म ने बनाया? पड़ौसी ने बनाया? हमने ऐसी कहानियां सनी हैं, जिनमें किसी व्यक्ति को कबतर बना दिया जाता है, किसी को भेड़-बकरी बना दिया जाता है। कहा जाता है- तांत्रिक शक्ति से ऐसा होता है। ये किंवदंतियां हो सकती हैं। किसी व्यक्ति के घर में गाय है, भैंस है, क्या उसने उन्हें गाय या भैंस बनाया? किसने बनाया? उसका अध्यवसाय ही उसे पश बनाता है। बनाने वाला है अपना अध्यवसाय इसीलिए जागरूकता की जरूरत है। हम इतने जागरूक रहें कि बुरे भाव, बुरे परिणाम, बुरे कामों से बचे रहें।
दोष दूसरों पर ___ अगर निश्चयनय की यह बात सामने नहीं होती तो व्यक्ति हमशा दूसरों पर दोष मढ़ता रहता। व्यवहार नय से इतना ज्यादा काम लिया गया और उससे दृष्टिकोण ऐसा बन गया कि दसरे को देखो, अपने आपको मत देखो। अपने आपको बचाकर रखो। स्वयं को कहीं गर्म हवा न लग जाए, लू न लग जाए। कालूगणि कहा करते थे-मेरे घुटने कमजोर रह गए। बहुत कम उम्र में उन्होंने हाथ में गेड़िया ले लिया। वे कहते-अपनी मां छोगाजी का मैं इकलौता लाडला बेटा था इसलिए मां कहीं घर से बाहर नहीं जाने देती। यह भय रहता कि मेरा बेटा कहीं जाएगा तो ठोकर लग जाएगी, चोट लग जाएगी। यदि बच्चा खेलता-कूदता नहीं है, बच्चों के साथ कहीं जाता नहीं है, घर में ही बैठा रहता है तो उसके घटने कमजोर ही होंगे। हम भी अपने आपको बचाकर रखते हैं, कहीं चोट नहीं लग जाए। हमने अपने आस-पास सुरक्षा के इतने कवच बना लिए हैं कि बाहर की हवा ही न लग जाए। प्रत्येक बात का दोष व्यक्ति सामने वाले पर मढ़कर अपना बचाव कर लेता है-अमुक व्यक्ति ने ऐसा कर दिया, अमक व्यक्ति ने वैसा कर दिया। जब तक हम इस व्यवहार की धारणा को नहीं बदलेंगे तब तक हमारा दृष्टिकोण आध्यात्मिक नहीं बनेगा, निश्चय का दृष्टिकोण नहीं बनेगा।
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