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________________ सत्य की खोज के दो दृष्टिकोण कभी छुटकारा नहीं पा सकेंगे। इस सचाई को समझना भी आवश्यक है - न ग्रह दुःख दे रहे हैं, न पड़ोसी दुःख दे रहा है, न कर्म दुःख दे रहा है । दुःख दे रहा है अपना अध्यवसाय । दूसरा दुःख दे रहा है, यह व्यावहारिक सचाई है। नैश्चयिक सचाई है - अपना अध्यवसाय दुःख दे रहा है। अध्यवसाय है चेतना का परिणाम अध्यवसाय का मतलब है चेतना का परिणाम । अध्यवसाय ने ही कर्म का दण्ड दिया है। वह मूल कारण है। हम केवल निमित्त पर अटक जाते हैं। मूल तक नहीं पहुंच पाते। कर्म का बंध अध्यवसाय करता है। जब अध्यवसाय होता है तब कर्म का बंध होता है। इस स्थिति में दुःख देने वाला कौन है ? अध्यवसाय है या कर्म ? दुःख या बंध का कारण है अध्यवसाय । जीव अपने अध्यवसाय से तिर्यंच, देव, मनुष्य और नरक गति का बंध करता है । पुण्य और पाप का कारण भी अध्यवसाय है । वत्थं पडुच्च जं पुण, अज्झवसाणं तु होदि जीवाणं, यवत्थु दु बंधो अज्झवसाणेण बंधोत्थि । । सव्वे करेदि जीवो, अज्झवसाणेण तिरियणेरइए । देवमणुए य सव्वे, पुण्णं पावं च णेयविहं । । कारण है अध्यवसाय 71 हम गहराई से सोचें। एक प्राणी पशु बना, गाय, घोड़ा, या कुत्ता बना। उसे किसने बनाया? नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव- ये चार गतियां हैं। एक जीव नरक में गया, एक पशु योनि में गया, एक मनुष्य बना और एक देवता बन गया। एक प्राणी को नरक में किसने भेजा ? एक प्राणी को मनुष्य किसने बनाया? एक प्राणी को देव किसने बनाया ? इसका उत्तर होगा - व्यक्ति अध्यवसाय से ऐसा बनता है। कर्म कौन होता है बनाने वाला? यदि व्यक्ति का अध्यवसाय नरक में जाने जैसा नहीं होता तो वह नरक में कभी नहीं जाता। भगवान् महावीर ने प्रत्येक गति के चार-चार कारण बतलाये हैं । कम तोल - माप करने वाला, व्यापार में गड़बड़ी करने वाला पशु योनि में पैदा होता है। यह कथन अच्छा नहीं लगेगा। किन्तु यह सचाई है, इसे स्वीकार भी करना होगा, ऐसा स्वयं भगवान् महावीर ने कहा है । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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