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सत्य की खोज के दो दृष्टिकोण दिया। हमने नाक से सूंघा और पता चल गया-यह संतरा है। नाक, आंख और जीभ, ये सारी इन्द्रियां अपना-अपना काम करती हैं, एक अंश को ग्रहण करती हैं। आंख ने रूप और आकार को बताया, जीभ ने चखकर बताया, नाक ने गंध से बताया। हमने संतरा हाथ में लिया, हाथ से छकर, स्पर्श कर बता दिया-यह संतरा है। स्पर्शन इन्द्रिय का भी अपना एक काम है। बहुत सारी बातें छकर बता दी जाती हैं। जिनका कान विकसित हो जाता है, वे सूक्ष्म ध्वनि को भी पकड़कर बता देते हैं। पटुता का निदर्शन
हिन्दुस्तान में ऐसे-ऐसे इन्द्रिय-पटु व्यक्ति हुए हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की गई। आज हम इन्द्रिय ज्ञान को भूल गए। यंत्रों और उपकरणों ने हमारे इन्द्रियों की शक्ति को बहुत कम कर दिया। आज पदार्थ-विश्लेषण का तरीका भिन्न हो गया है। वैज्ञानिक पदार्थ की यंत्रों से जांच करेगा, उसका रासायनिक विश्लेषण करेगा। उसके बाद बतायेगा कि इसमें अमुक-अमुक द्रव्य हैं। प्राचीन काल में वह ऐसे कार्य को अपनी इन्द्रिय पटुता से संपादित कर लेता था।
एक विदेशी सम्राट ने भारतीय राजा को सुरमा भेजा। उस सुरमे से अन्धा आदमी चक्षुष्मान् बन जाता था। सुरमे की डिबिया में सुरमा बहत कम था। उसे केवल एक व्यक्ति की आंखों में ही आंजा जा सकता था। राजा ने सोचा-कैसा सुरमा है, पता लगाना चाहिए? उसका एक बूढ़ा मंत्री अन्धा था। राजा ने उसे बुलाकर कहा-यह सुरमा आंख में आज लें, आपकी दृष्टि लौट आएगी। वृद्ध मंत्री ने एक आंख में सुरमा डाला, आंख लौट आई। वह तत्काल देखने लग गया। उसने सुरमे को दूसरी आंख में नहीं डाला, उसे जीभ पर डालना चाहा।
राजा ने कहा-क्या कर रहे हैं आप? आपकी एक आंख लौट आई, दसरी आंख में डालें, दिखने लग जायेगा। उसमें नहीं डालेंगे तो काने रह जाएंगे। मंत्री बोला-महाराज! मैं काना नहीं रहूंगा किन्तु सबका अंधापन मिटा दूगा।
मंत्री ने जीभ पर सुरमा डालकर उसका सूक्ष्म विश्लेषण किया, परीक्षण किया और दूसरे दिन राजा के सामने वैसा ही सुरमा हाजिर कर दिया। मंत्री ने कहा-महाराज! यह वही सरमा है, जिसे मैंने एक आंख में डाला था। अब आप हजारों-हजारों लोगों की आंख लौटा सकेंगे। विदेशी सम्राट् का दूत मंत्री की इस पटुता से विस्मित हो उठा।
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