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________________ 60 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा परिणाम होगा? दूसरे दिन सूरज उगेगा या नहीं? आदमी खाने से ही नहीं जीता, न खाने से भी जीता है। यह भी कहा जा सकता है- आदमी खाने से नहीं, पचाने से जीता है। खाने के साथ पचाने के लिए भी समय चाहिए। यदि व्यक्ति खाता ही चला जाए तो पचाने का प्रश्न ही नहीं उठेगा। मनुष्य दिन में दो-चार बार खाता है, दो घण्टे से ज्यादा संभवतः नहीं खाता इसीलिए वह जीता है। भोजन और अभोजन का एक संतुलन है। प्रवृत्ति : निवृत्ति मनुष्य प्रवृत्ति करता है । वह प्रवृत्ति के साथ-साथ निवृत्ति करता है। जापानी लोगों से पूछा- आप लोग ध्यान करते हैं ? उत्तर मिला- हम बहुत व्यस्त रहते हैं। अगर ध्यान न करें तो जीना मुश्किल हो जाए। हमने प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति के सूत्र को सीखा है। उन्होंने कहा- जापान के लोग सक्रिय बहुत हैं किन्तु निष्क्रिय रहना भी जानते हैं। पंडित नेहरु से पूछा गयाएक दिन में अनेक भाषण दे डालते हैं। कभी यहां और कभी वहां, भाषण चलते ही रहते हैं। आप इतना सक्रिय जीवन कैसे जी लेते हैं ? नेहरु ने उत्तर दिया- आपको मेरी सक्रियता दिख रही है किन्तु मैं निष्क्रिय होना भी जानता हूं। आप - सक्रियता में निष्क्रियता की खोज, व्यस्तता में खालीपन की खोज, प्रवृत्ति में निवृत्ति की खोज, अस्थिरता में स्थिरता की खोज शुद्ध चेतना की खोज है । जो व्यक्ति इस चेतना की खोज करता है, वह अपनी समस्या को सुलझा लेता है। प्रश्न उपयोगिता का प्रश्न उपयोगिता का भी है। शुद्ध चेतना को खोजने की उपयोगिता क्या है ? हमने ध्यान किया, शुद्ध चेतना के अनुभव के लिए प्रवृत्त हुए। हो सकता है- आज उसकी उपयोगिता समझ में न आए किन्तु उससे प्रभावित जीवन उसकी उपयोगिता को प्रस्तुत कर देता है। शुद्ध चेतना का स्पर्श करने वाले व्यक्ति के जीवन में जो बदलाव आता है, उसका केवल उसे ही नहीं, दूसरों को भी पता चलता है। उसका असर वर्तमान में ही नहीं, सुदीर्घ भविष्य में भी प्रतिबिम्बित होता रहता है। शुद्ध चेतना से प्रभावित व्यक्ति अपने लिए ही नहीं, समाज के लिए भी कल्याणकारी बनता है। पुराने जमाने की बात है। राजा वेश बदलकर नगर में घूम रहा था। वह घूमते-घूमते एक बगीचे में पहुंच गया। माली अखरोट का पेड़ लगा रहा था। राजा ने पूछा- अरे भाई ! तुम अखरोट का पेड़ लगा रहे हो। इस पर फल काफी वर्षों के बाद लगते हैं। वे फल तुम्हारे क्या काम आएंगे ? इस वृक्ष को लगाने की उपयोगिता क्या है? माली ने उत्तर दिया- तुम होशियार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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