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________________ जागरण और नींद का संघर्ष 59 जीवन जीया है। जो शुद्ध चेतना की छाया में जीते हैं, उनके सामने कोई समस्या समस्या नहीं बनती। एक संत गांव में प्रवेश कर रहे थे। सैकड़ों भक्त उनके साथ थे। एक व्यक्ति संत के सामने आया। उसके हाथ में एक पात्र था। वह कोयला एवं राख से भरा हुआ था। संत के निकट आते ही उसने राख एवं कोयला संत के शरीर पर फैंका। जो भक्त साथ चल रहे थे, वे इस दृश्य को देख कुपित हो उठे। उन्होंने कहा - कितना बदतमीज है ! कुछ व्यक्ति उसे मारने के लिए आगे बढ़े। संत ने कहा- शांत रहो। लोग बोले- महाराज ! आप मत रोकिए। इस मूर्ख आदमी को मारना ही उचित है। संत ने शांत स्वर में कहा - यह कितना अच्छा आदमी है । इसने आग उगलते हुए अंगारे नहीं फेंके, बुझे हुए कोयले फेंके हैं। इससे हमारा क्या नुकसान हुआ ? एक बार स्नान करेंगे, सारा मैल साफ हो जाएगा। बाधा है व्यस्तता यह है शुद्ध चेतना। जहां शुद्ध चेतना होती है, वहां कोई समस्या पैदा नहीं होती, सारी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। हम एक ओर अशुद्ध चेतना को पाल रहे हैं, उसे पोषण और प्रोत्साहन दे रहे हैं, दूसरी और अशुद्ध चेतना के परिणामों से भयभीत बने हुए हैं। यह दोहरी मूर्खता है । यदि हम सचमुच समस्याओं से मुक्ति चाहते हैं तो हमें चेतना को निर्मल बनाने का अभ्यास करना होगा। आज का व्यक्ति समस्याओं से मुक्ति चाहता है किन्तु शुद्ध चेतना को जगाने के लिए उसके पास समय नहीं है। किसी व्यक्ति से कहा जाए - तुम ध्यान किया करो, कुछ समय आत्मचिन्तन में लगाया करो। उसका उत्तर होगा - मैं बहुत व्यस्त हूं। मेरे पास पांच मिनट का भी समय नहीं है। मैं मानता हूं, अत्यन्त व्यस्त होना मौत को जल्दी बुलाना है। जो आदमी अपने आपको व्यस्त रखता है, अपने दिमाग को कभी खाली नहीं करता, वह शायद मौत को ज्यादा प्यारा है। मौत उसे जल्दी अपने घर बुलाना चाहती है। संतुलन सूत्र खाली होना, यह जीने की कला है । जो व्यक्ति निरंतर व्यस्त है, वह समझदार नहीं है, नासमझी का जीवन जी रहा है। जो व्यक्ति जीवन काँ मूल्य समझता है, जीवन का अर्थ समझता है, वह अपने आपको व्यस्त भी रखता है, खाली भी रखता है। खाली रहना और व्यस्त रहना- इन दोनों में स्वस्थ जीवन का रहस्य छिपा है। भोजन और अभोजन- दोनों का सम्यक् योग स्वस्थ जीवन का लक्षण है। यदि एक व्यक्ति सूर्योदय के साथ भोजन शरूं करे और अगले दिन सर्योदय तक भोजन करता चला जाए तो क्या For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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