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________________ जागरण और नींद का संघर्ष 55 पर पहुंच गए। गुफा के भीतर घुसे। उन्होंने देखा- गुफा के भीतर ढेर सारा सोना पड़ा है। उसका कोई रखवाला नहीं है, मालिक नहीं है। उनका मन विस्मय से भर गया। उनकी आवाज थम गई, चिन्तन रुक गया। वे एकटक सोने के अपार ढेर को निहारने लगे। उनकी आंखें चंधिया गईं, सोचा- इतना सोना कहां से आया? यह सपना तो नहीं है? प्रश्न का समाधान नहीं मिला। तपस्वी ने कहा था- मौत का साक्षात्कार होगा किन्तु मौत का नहीं, सोने का साक्षात्कार हो रहा है। चितन आगे बढ़ामौत को फिर देख लेंगे। जब सोना मिल गया है तब मौत को क्यों देखें? वे मौत की बात भूल गए। सोने के आकर्षण में डूब गए। तीनों के मन में लोभ की चेतना जाग गई। जिज्ञासा की चेतना, ज्ञान की चेतना नीचे दब गई, लोभाक्रांत चेतना उभर आई। तीनों व्यक्तियों के मन में एक विकल्प उठा- सारा सोना मुझे कैसे मिले? प्रत्येक व्यक्ति इस चिन्ता में उलझ गया। तीनों में जो सबसे बड़ा था, उसने कहा- भाई! हमें अनायास ही अपार धन मिला है। हमें उस धन को ले जाना है किन्तु हम भूखें हैं, इतना भार उठा नहीं पाएंगे। एक व्यक्ति से कहा- तुम आसपास किसी गांव में जाओ और कछ रोटियां ले आओ। दूसरे से कहा- तम भी बाहर किसी जलाशय से पानी ले आओ। मैं तब तक यहां रखवाली करूंगा। मौत का साक्षात्कार जब चेतना विकृत होती है, सब कुछ विकृत हो जाता है। विचार के बरे परमाणु इतने संक्रमणशील होते हैं कि वे प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क को प्रभावित कर देते हैं। तीनों व्यक्तियों की चेतना विकृत बन गई। पहला व्यक्ति समीपवर्ती गांव में गया और थोड़ी देर में रोटी ले आया। ज्यों ही वह गफा के भीतर घसने लगा, भीतर बैठे व्यक्ति ने तलवार से वार किया। तलवार के तीव्र प्रहार से गला कट गया, सिर धड़ से अलग हो गया। कुछ समय बाद दूसरा व्यक्ति पानी लेकरं आया। उसके साथ भी वही हआ। तलवार चली, मौत का साक्षात्कार हो गया। दोनों व्यक्ति मर गए। तीसरे ने सोचा- बहुत अच्छा हुआ। भोजन भी मिल गया, पानी भी मिल गया और धन भी मिल गया। उसने भर पेट भोजन किया, पानी पिया। सोना बटोरने की तैयारी करने लगा। ऐसा करते करते वह भी वहीं लुढ़क गया। भोजन और पानी- दोनों में जहर था। एक ने सोचा था- भोजन में विष मिला दूं। वे दोनों खाएंगे और मर जाएंगे। यदि मझे खाने के लिए कहेंगे तो मैं कहंगा- मैं खाना खाकर आया हूं। मुझे भूख नहीं है। आप खा लीजिए। दूसरे ने सोचा था- मैं पानी में जहर मिलाकर ले जाऊं। वे दोनों पानी पिएंगे, दोनों मर जाएंगे, सारा धन मझे मिल जाएगा। एक ही विचार तीनों में संक्रान्त हो गया। धन किसी को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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