________________
S4
समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा उवओगे उवओगो, कोहादिसु णत्थि को वि उवओगो। कोहो कोहे चेव हि उवओगे णत्थि खलु कोहो।। अठवियप्पे कम्मे णेकम्मे चावि णत्थि उवओगो।
उवओगम्हि य कम्म णोकम्मं चावि णो अत्थि।। समस्या से मुक्ति का उपक्रम
शुद्ध चेतना में केवल चेतना होती है, केवल ज्ञान होता है। जब चेतना अशुद्ध बनती है तब सारी विकृतियां पैदा होती हैं। शुद्ध चेतना में रहने का अभ्यास समस्या से मक्ति पाने का उपक्रम है। केवल ज्ञान का काम है केवल जानना, अनुभव करना। हम इस स्थिति में रहें तो मानसिक स्थिति बदल सकती है, सामाजिक समस्याओं में भी सधार हो सकता है। जो व्यक्ति केवल ज्ञान की स्थिति में रहता है, वह किसी का अनिष्ट नहीं कर सकता, किसी के साथ अन्याय नहीं कर सकता। जब-जब हम ज्ञान-चेतना से हटकर भय, क्रोध, लोभ और काम की चेतना में प्रवेश करते हैं तब-तब हमारी मानसिकता विकृत बन जाती है, हमारे विचार दूषित हो जाते हैं। व्यक्ति की जिज्ञासा : तपस्वी का समाधान
तीन व्यक्ति जंगल में जा रहे थे। उन्होंने देखा- एक तपस्वी तप तप रहा है। तीनों तपस्वी को प्रणाम कर उनकी उपासना में बैठ गए। तपस्वी का ध्यान पूरा हुआ। एक व्यक्ति बोला- महाराज! आज मेरे मन में एक प्रश्न उभर रहा है। क्या आप उसका समाधान देंगे? तपस्वी- हां! तुम्हारा प्रश्न क्या है? मौत क्या है? हम उसका साक्षात्कार करना चाहते हैं? क्या सचमच मौत का साक्षात्कार करना चाहते हो? हां।
उनकी चेतना में कोई विकार नहीं था। एक जिज्ञासा थी मन में। वे सत्य को जानना चाहते थे, मौत को साक्षात् करना चाहते थे। — तपस्वी ने अंगुली से सामने दिख रहे पहाड़ की ओर इशारा करते हुए कहा- उस पहाड़ में जो गफा दिखाई दे रही है, उसमें जाओ। वहां मौत बैठी है, उसका साक्षात्कार हो जाएगा। कहां है मौत?
तपस्वी के इस उत्तर से वे प्रसन्न हो गए। मौत से साक्षात्कार का उपाय जानकार वे गफा की ओर चल पड़े। उनके मन में अदम्य उत्साह था उनकी चेतना निर्मल और विशद्ध थी। कछ ही देर में वे गफा के द्वार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org