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जागरण और नींद का संघर्ष
आदमी दिन में जागता है, रात में नींद लेता है। जागरण और नींद के साथ दिन-रात का संबंध जुड़ा हुआ है। जागरण प्रत्येक क्षेत्र में लाभदायक माना गया है। जागरूक रहना सफलता के लिए अनिवार्य है। अध्यात्म में जागरण का विशेष अर्थ है- शद्ध चेतना में होना और नींद का अर्थ है अशुद्ध चेतना में होना। जो व्यक्ति अशुद्ध चेतना में जीता है, वह नींद में होता है। जो व्यक्ति शुद्ध चेतना में जीता है, वह जागरण की अवस्था में होता है। समस्या का मूल
वस्तुतः जागरण बहुत मल्यवान् है। जागरण के अभाव में ही बहत सारी समस्याएं पैदा होती हैं। आदमी जागृत होता है तो अनेक समस्याएं सुलझ जाती हैं। हम पूरे समाज का अध्ययन करें तो हमारा निष्कर्ष होगा, समाज समस्याओं से आक्रांत है। अनैतिकता की समस्या है, अप्रामाणिकता और भ्रष्टाचार की समस्या है, कलह की समस्या है। पारिवारिक, सामाजिक और संस्थागत जीवन में ऐसी अनेक समस्याएं प्रस्तुत होती हैं। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन भी इनसे अछूता नहीं है। प्रश्न है- ये समस्याएं क्यों पैदा हो रही हैं? हम समस्याओं के मल को पकडें। ये समस्याएं अशद्ध चेतना से उपजी समस्याएं हैं। अशद्ध चेतना इन समस्याओं को जन्म दे रही है। यदि चेतना शद्ध होती तो ये समस्याए पैदा नहीं होती। उपयोग और क्रोध
आचार्य कुन्दकुन्द ने लिखा- उपयोग में केवल चेतना का उपयोग होता है। उपयोग में क्रोध नहीं होता और क्रोध में उपयोग नहीं होता। जब क्रोध की चेतना है तब शद्ध ज्ञान की चेतना नहीं है। जब शद्ध ज्ञान-चेतना है तब क्रोध-चेतना नहीं है। शुद्ध ज्ञान-चेतना और क्रोध-चेतना - दोनों एक साथ नहीं हो सकती। शद्ध चेतना के क्षण में न क्रोध होता है, न मान होता है, न कपट, लोभ और कामवासना होती है। उपयोग की अवस्था में आठों ही कर्म नहीं हैं।
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