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समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा नारद आगे बढ़े। नए संन्यासी के पास गए। प्रश्न का समाधान प्रस्तुत किया। भगवान् ने कहा है-जिस बरगद के नीचे तुम साधना कर रहे हो, उसके जितने पत्ते हैं, उतने जन्मों के बाद तुम्हारी मुक्ति होगी। यह सनते ही संयासी नाचने लगा, खुशी से झूम उठा। वह बोला-भगवान् ने क्या बात कही है! आप कितना अच्छा समाचार लाए हैं! मैं धन्य हो गया।
नारदजी आश्चर्य में पड़ गए। वृद्ध संन्यासी रोने लग गया और यह युवा संन्यासी खुशी से झूमने लगा। नारदजी ने नए संन्यासी से पूछा-तुम नाच रहे हो? क्या पागल हो?
नहीं! प्रभु की बड़ी कृपा है। दुनिया में हजारों बरगद के पेड़ हैं। यह अच्छा हुआ कि एक ही बरगद के पेड़ का उल्लेख किया है। अगर संसार भर के सारे पेड़ होते तो मैं मारा जाता। आशा का भाव
मनोविज्ञान की भाषा में यह विधायक दृष्टिकोण है और अध्यात्म की भाषा में आशावादिता है। एक आशा का भाव है, जिसके कारण व्यक्ति प्रत्येक तथ्य को विधायक दृष्टि के रूप में स्वीकार करता है।
श्रेणिक को पता चला-मरकर नरक में जाना है, वह बड़ा निराश हुआ। उसे दूसरा संवाद मिला-नरक के बाद श्रेणिक तीर्थंकर बनेगा। श्रेणिक ने कहा - कोई बात नहीं है, यह नरक में जाना थोड़ी-सी समस्या है। मैं इसे पार कर जाऊंगा। वह आने वाले दुःख और कठिनाई को भूल गया, हर्ष से उछल पड़ा।
जिस व्यक्ति में आशा होती है, विधायक भाव होता है, वही साधना के क्षेत्र में सफल होता है। जो निराश हो जाता है, वही कभी सफल नहीं होता। आत्म-विश्वास जागे
पहली बात है-सराग से वीतराग की कक्षा तक पहुंचने के लिए हमारे मन में एक आत्मविश्वास होना चाहिए। एक संकल्प जागे-मुझे कहां जाना है। दुनिया में बाधारहित व्यक्ति कोई भी नहीं है। सराग से वीतराग बनने के लिए, सविचार से निर्विचार बनने के लिए, सविकल्प से निर्विकल्प बनने के लिए सबसे पहले आस्था का निर्माण करें, आशावादी दृष्टिकोण का निर्माण करें और मध्य में जो बाधाएं आती हैं, उनको पार करें। जो व्यक्ति आज सराग है, वह अपनी साधना और
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