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________________ 38 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा सम्यग् दृष्टिकोण जागे, मिथ्या दृष्टिकोण बदले। जो जैसा है, हम उसे वैसा ही समझें। हमारा ज्ञान विपरीत न बने। यदि ऐसा होता है तो दुःख-मुक्ति की दिशा में हमारा प्रस्थान हो जाता है। अज्ञान से प्रतिबंधित है ज्ञान समस्या का एक हेतु है- अज्ञान। अपने आपको जानने में हमारा अज्ञान बाधक रहा है। अज्ञान इतना गहरा बना हुआ है कि हमें अपना प्रकाश दिखाई ही नहीं देता। अपने भीतर कितना प्रकाश है, इसका हमें पता नहीं है। जब प्रज्ञा जागती है, तब पता चलता है- कितना ज्ञान हमारे भीतर है। अभी तक वह पुस्तकों में अटका हुआ है। व्यक्ति सोचता है- विद्यालय में जाएंगे, पुस्तकें पढ़ेंगे तो ज्ञान मिलेगा। विद्यालय में नहीं जाएंगे, पस्तकें नहीं पढ़ेंगे तो ज्ञान नहीं मिलेगा, अज्ञानी ही बने रहेंगे। न जाने कितने लोग विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में पढ़कर भी अज्ञानी बने हुए हैं और वे सारी दुनिया को तबाह कर रहे हैं। वास्तव में ज्ञान अपने भीतर होता है। दनिया के जितने भी बड़े-बड़े वैज्ञानिक हुए हैं, जितने बड़े-बड़े आविष्कार हुए हैं, वे सब अन्तर्ज्ञान के क्षणों में संभव बने हैं। उनसे पूछा गया- आपने यह कैसे किया? यह कैसे सोचा? उन्होंने उत्तर दिया- हमने सोचा ही नहीं। बस, अकस्मात् घटित हो गया। कैसे हुआ, यह पता नहीं है। आईंस्टीन ने कहा था- यह सापेक्षवाद का सिद्धांत कहां से आया- मझे पता नहीं है किन्तु वह प्राप्त हो गया। इसका कारण है अंतर्ज्ञान। आज के मस्तिष्क-विज्ञानी बतलाते हैं- मस्तिष्क में जितनी शक्ति है, व्यक्ति उसके पांच-दस प्रतिशत भाग का ही उपयोग कर पाता है। शेष शक्ति पर उसका ध्यान ही नहीं जाता। जब तक आत्मिक ज्ञान प्राप्त नहीं होता, भीतर की चेतना नहीं जागती तब तक केवल बाहर के ज्ञान पर भरोसा कर जीना पड़ता है। इस अज्ञान ने हमारे ज्ञान को प्रतिबंधित बना रखा है और यही समस्या का कारण बना हआ है। कषाय से प्रतिबंधित है चरित्र समस्या का एक हेतु है कषाय। व्यक्ति के पास एक शक्ति है चारित्र की, सम्यक् आचरण की। सम्यक् आचरण कषाय से प्रतिबंधित है। क्रोध जागता है, सम्यक् आचरण उसके नीचे दब जाता है। अहंकार जागता है, सम्यक् आचरण उसने नीचे दब जाता है। माया और लोभ जागते हैं, सम्यक् आचरण उनके नीचे दब जाता है। व्यक्ति विकल्पों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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