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समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा नहीं हुआ। वह प्रसन्न था, अपनी मस्ती में डूबा हुआ था। व्यक्ति ने सोचा-यह विचित्र आदमी है। मैंने गालियां दी और यह हंस रहा है। इसे गुस्सा नहीं आया। व्यक्ति गाली दे और सामने वाले व्यक्ति को गुस्सा न आए तो उसे संतोष नहीं होता। एक व्यक्ति गाली दे और सामने वाला व्यक्ति गुस्से से भर जाए उसका चेहरा लाल-पीला हो जाए तो व्यक्ति को मजा आता है। व्यक्ति से रहा नहीं गया। उसने कहा-महाशय! मैंने गाली दी और आप पर कोई असर नहीं हआ? ऐसा क्यों? साधक ने मस्कराते हए कहा-तमने गालियां दीं किन्त मैंने स्वीकार नहीं की। मैं अप्रसन्न तब बनता, जब उन गालियों को स्वीकार कर लेता। व्यवहार-परिवर्तन का कारण
हम देखें। दुनिया में जितने महापुरुष हुए हैं, जितने बड़े-बड़े व्यक्ति हए हैं, उनका व्यवहार सामान्य व्यक्ति से जरा भिन्न दिखाई देता है। इसका कारण है-जिस व्यक्ति में ज्ञान की थोड़ी-सी चेतना जाग जाती है, ज्ञान की एक किरण फट पड़ती है, उसका सारा व्यवहार बदल जाता है। हमें लगता है-वह बड़ा आदमी है। उसकी बुराई करने पर भी उसने अच्छा व्यवहार किया, उसे कष्ट देने पर भी उसने अच्छा व्यवहार किया। हम इसे बड़ी बात मानते हैं पर ऐसा होता है। जब अज्ञान मिटता है, ज्ञान की दीपशिखा जल उठती है, व्यक्ति बदल जाता है। महत्त्वपूर्ण सूत्र
ज्ञान का महत्त्वपूर्ण सूत्र है-इच्छापरिवर्तन, अनिच्छा का जागना, अनुरागात्मक इच्छा का न होना। एक प्रश्न प्रस्तुत हो सकता है-हमारे बहुत कर्म किए हुए हैं। उन कर्मों का फल मिलता है, बहुत सारे पदार्थ
और सामग्री मिलती है। इस अवस्था में ज्ञानी क्या करेगा? आचार्य ने कहा-अज्ञानी आदमी वर्तमान में उस सामग्री को भोगेगा, पदार्थ के प्रति अनुराग करेगा और भविष्य के लिए आकांक्षा करेगा-आज मुझे बड़ा सुख मिला है, कल भी ऐसा ही सुख मिलना चाहिए। भविष्य की आकांक्षा और वर्तमान के प्रति अनुराग। जो आदमी ज्ञानी है, वह वर्तमान में प्राप्त पदार्थ को काम में लेगा किन्तु उसके प्रति अनुराग नहीं करेगा। बहुत सूक्ष्म भेद है-काम में लेना और अनुराग न करना। न वर्तमान में राग और न भविष्य में आकांक्षा
उप्पण्णोदय भोगे वियोगबुद्धिए तस्स सो णिच्च। कंखामणागदस्स य, उदयस्स ण कुव्वदे णाणी।।
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