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ज्ञान खोल देता है जीवन में नए आयाम
पार के बारे में सोचता रहता है। उपवास के पारणे में क्या खाऊंगा ? क्या पदार्थ पारणे के समय खाना चाहिए ? इन सब बातों की चिंता वह उपवास के दिन कर लेता है। यह व्यक्ति का अज्ञान है।
विचित्र प्रश्न
इच्छा और अनिच्छा के आधार पर ज्ञानी और अज्ञानी की एक परिभाषा बन गई। कभी-कभी परिभाषाएं भी निर्धारित होती हैं ।
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एक डाक्टर ने भोज का आयोजन किया। अनेक वरिष्ठ नागरिक उस भोज में आमंत्रित थे । प्रत्येक व्यक्ति की प्लेट में भोजन परोस दिया गया। डाक्टर ने कहा- अब हम भोजन शुरू करेंगे। मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं - आप आदमी की तरह भोजन करेंगे या पशु की तरह भोजन करेंगे? लोगों ने कहा- डाक्टर साहब! आपका प्रश्न बड़ा विचित्र है । हम आदमी हैं, आदमी की तरह करेंगे, पशु की तरह कैसे करेंगे? आपके इस प्रश्न का तात्पर्य क्या है? डाक्टर साहब ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा - आदमी भोजन करने बैठता है और अच्छी चीज सामने होती है तो वह खाता ही चला जाता है। पशु भी भोजन करता है किंतु वह जितनी भूख होती है, उतना ही खाता है। आप सोचें - आप भोजन पशु की तरह करेंगे या आदमी की तरह करेंगे?
आदमी की तरह खाना, यह अज्ञानी का भोजन है और पशु की तरह खाना, यह ज्ञानी का भोजन है। यह बात उलटी लगेगी। पशु नहीं बनाता है किंतु पशु की तरह भोजन करना है। पशु की अच्छी बात को क्यों नहीं ग्रहण किया जाए? अच्छी बात किसी से भी प्राप्त हो, ले लेनी चाहिए।
व्यवहार ज्ञानी का
ज्ञानी का व्यवहार सर्वथा भिन्न होता है। अज्ञानी का व्यवहार सर्वथा भिन्न होता है । जब ज्ञान की चेतना जागती है, तब पदार्थ की चेतना, अहंकार और ममकार की चेतना कम होती चली जाती है, जीवन का सारा व्यवहार बदल जाता है।
साधक के पास एक व्यक्ति आया और गालियां बकने लगा। उसने बहुत गालियां कीं । सामान्य बात यह है - ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए | सामान्य व्यक्ति गाली के प्रति गाली का प्रयोग करेगा, वह लाठी और पत्थर का प्रयोग भी कर लेता है लेकिन एक ज्ञानी आदमी का व्यवहार इससे भिन्न होगा। साधक का मन गालियां सनकर भी खिन्न
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