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________________ 18 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा है। दो शब्द बहुत प्रसिद्ध हैं-आब्जेक्ट (पदार्थ) और सब्जेक्ट (आत्मा)। व्यक्ति का ध्यान आब्जेक्ट पर, पदार्थ, कर्म या विषय पर अटका हुआ है। उसका ध्यान सब्जेक्ट पर नहीं है। व्यक्ति का सारा बोध पदार्थ से जड़ा हआ है। हमारी सारी पहचान भी पदार्थ के माध्यम से होती है। कहा जाता है-यह आदमी धनी है। धन के साथ पहचान जड़ गई। कहा जाता है-अमुक व्यक्ति प्रशासनिक अधिकारी है, प्रोफेसर है, वकील है, विद्वान् है। ये सारे परिचय पदार्थ से जुड़े हुए हैं। इस दुनिया में हम पदार्थ के द्वारा पहचाने जा रहे हैं। हमारी अपनी कोई पहचान नहीं है। आदमी कैसा है? इसका कोई बोध नहीं है। हालांकि आदमी का मल्य सर्वोपरि है चैतन्य का मूल्य सर्वोपरि है, किन्तु उसके द्वारा हमारी कोई पहचान नहीं है। पदार्थ हमारी पहचान का माध्यम है और यही अपनी पहचान में बड़ी बाधा है। ज्ञान और जीवन-व्यवहार - हमारे सामने प्रश्न है-यदि ज्ञान इतना शद्ध बन गया, ज्ञान ज्ञान में प्रतिष्ठित हो गया तो जीवन की यात्रा कैसे चलेगी? जब राग नहीं रहेगा, आकर्षण नहीं रहेगा तो जीवन का व्यवहार कैसे संभव बन पाएगा? क्या ज्ञानी आदमी खाना नहीं खाएगा? क्या ज्ञानी आदमी बीमार होने पर चिकित्सा नहीं कराएगा? दवा नहीं लेगा? क्या ज्ञानी आदमी मकान में नहीं रहेगा? अगर उसका पदार्थ से सम्बन्ध नहीं है, लगाव नहीं है, वह केवल ज्ञान में प्रतिष्ठित है तो जीवन के सारे व्यवहार समाप्त नहीं हो जाएंगे? आचार्य ने समाधान की भाषा में कहा-ज्ञानी के ज्ञान में प्रतिष्ठित होने पर भी जीवन के व्यवहार समाप्त नहीं होंगे। ज्ञानी आदमी खाना भी खाएगा, पानी भी पिएगा। बीमार होने पर दवा भी लेगा। __ आचार्य कुन्दकुन्द ने इस सचाई को बहुत स्पष्टता से प्रतिपादित किया-ज्ञानी होने का अर्थ पदार्थ को छोड़ना नहीं है। ज्ञानी व्यक्ति पदार्थ का उपभोग करेगा किन्तु उसका दृष्टिकोण बदल जाएगा। घटना एक : दृष्टिकोण दो ___ भूख लगने पर एक ज्ञानी व्यक्ति भी भोजन करेगा किन्त उसके प्रति उसकी बुद्धि उपचारात्मक होगी। वह सोचेगा-भूख एक बीमारी है। उसके उपचार के लिए भोजन करना है। संस्कृत में भूख का नाम ही है-'जाठराग्निजा पीडा'। भूख एक व्याधि है, पीड़ा और बीमारी है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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