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________________ 12 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा वह कहेगा-खाना कितना अच्छा बना है। स्वादिष्ट है, मजा आ गया। यदि अच्छा नहीं बना है तो वह कहेगा - कैसा भोजन बनाया है, कितना घटिया है, ऐसा भोजन न करता तो अच्छा होता! भोजन के साथ दो बातें जुड़ीं-राग की चेतना, द्वेष की चेतना यानी कर्म की चेतना। उससे कर्मसंस्कार का बंध हो गया। व्यक्ति अच्छा मकान देखकर कहेगा-कितना बढ़िया मकान बना है। वह उसकी प्रशंसा करते थकेगा ही नहीं। यदि मकान पसंद नहीं आया तो कहेगा, कितना खराब मकान बनाया है! बनाना ही नहीं जानता। मकान बनाने वाला बेवकूफ है। केवल भोजन या मकान का प्रश्न नहीं है। दुनिया के जितने पदार्थ हैं, उनके प्रति या तो राग की बात आएगी या द्वेष की बात आएगी। कोई आदमी किसी का अच्छा स्वागत करता है तो स्वागत पाने वाला व्यक्ति कहेगा-कितना सज्जन है! क्या सत्कार किया! यदि स्वागत या सम्मान अच्छा नहीं होता है तो आलोचना हो जाती है। दुनिया का यह सारा व्यवहार राग और द्वेष की चेतना पर टिका हआ है। राग और द्वेष की चेतना हर पदार्थ और घटना के साथ जुड़ी हुई है। इन दोनों से परे, कर्म की चेतना से परे जो वीतराग चेतना है, वह शुद्ध चेतना है। उसे समझना बहुत कठिन है। शायद बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो उस चेतना को जानते हैं। कर्मफल की चेतना दूसरी है कर्मफल की चेतना। प्रत्येक आदमी चाहता है-अच्छा भोजन मिले, अच्छा मकान मिले, सारी सविधाएं मिलें, सब कुछ मिले। यह कर्मफल की चेतना है। व्यक्ति कर्म का फल चाहता है, अच्छा फल चाहता है। वह चाहता है-पुण्य का फल मिले, भाग्य खिल जाए। व्यक्ति ज्योतिषी के पास जाता है, उसे कुंडली दिखाता है, हाथ की रेखा दिखाता है और पूछता है-मेरा भाग्य कैसा है? मैं क्या बनूंगा? बड़ा सेठ बनूंगा, करोड़पति बनूंगा या कोई अधिकारी बनंगा? ये सारे प्रश्न कर्मफल की चेतना से जुड़े हुए हैं। परिवार नियोजन के अधिकारी एक सेठ के पास गए। सेठ को अपना परिचय देते हुए कहा-सेठ साहब! आपके कितनी संतानें हैं? सेठ ने कहा-सात। अब आप परिवार नियोजन करा लें। नहीं। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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