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अपने आपको जानें
आपको धोखा नहीं देता, उसे कोई दूसरा धोखा दे नहीं सकता। जो आदमी अपने आपको धोखा देता है, उसे दूसरे धोखा क्यों नहीं देंगे? निश्चय पर बल क्यों?
हम केन्द्र में आएं। केन्द्र में आने का मतलब है आत्मा को जानना । आत्मा को जानने का अर्थ है- सारी समस्याओं को जानना । आत्मा को जानना अपने भाग्य की डोर को अपने हाथ में थामना है। आत्मा को जानना दुनिया के सारे धोखों से बचना है, मिथ्या छल और प्रपंचों से बचना है। आत्मा को जानना अपने मिथ्या दृष्टिकोण का परिष्कार करना है । आचार्य कुन्दकुन्द ने आत्मा को जानने की बात पर अधिक बल दिया किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे व्यवहार की सचाई से अनभिज्ञ थे । व्यवहार के बिना काम कैसे चलेगा, इस सचाई से वे परिचित थे । वे जानते थे - आदमी व्यवहार में ही जी रहा है, उसे व्यवहार समझाने की जरूरत ही क्या है ? वह जिसे नहीं जी रहा है, उसे उस ओर ले जाने की जरूरत है। इसीलिए कुन्दकुन्द ने कहा- तुम निश्चय में आओ, आत्मा को देखो, आत्मा को समझो और आत्मा से बात करो। जब तुम आत्मा से बात करने लगोगे, अपने आप मौन सध जाएगा। तब तक मौन अच्छा नहीं होता जब तक हम आत्मा से बात करना नहीं जानते। तब तक ध्यान अच्छा नहीं होता जब तक हम अपने आपको देखना नहीं जानते। अपने आपको देखना, अपने आप से बात करना और अपने आपको काम में लेना - इसका अर्थ है निश्चय में जीना ।
चेतना के तीन प्रकार
आचार्य कुन्दकुन्द ने अध्यात्म की जो भाषा दी है, उसका महत्त्वपूर्ण सूत्र है - भेद - विज्ञान | अध्यात्म का सबसे बड़ा सूत्र है भेद - विज्ञान । हमारी चेतना तीन प्रकार की होती है - ज्ञानचेतना, कर्मचेतना और कर्मफल चेतना । सारी दुनिया कर्म की चेतना को जानती है, कर्मफल की चेतना को जानती है किन्तु ज्ञान की चेतना को नहीं जानती । जितनी आश्रव की चेतना है, राग और द्वेष की चेतना है, वह कर्म की चेतना है । क्या कोई व्यक्ति ऐसा है, जो राग का जीवन नहीं जीता, द्वेष का जीवन नहीं जीता?
कर्म की चेतना
प्रिय और अप्रिय दोनों संवेदनों में हमारे सारे जीवन की यात्रा चलती है। एक व्यक्ति भोजन करने बैठा । यदि भोजन अच्छा बना है तो
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