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समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा भी अपना एक महत्त्व है, प्रकृति का भी अपना एक महत्त्व है, स्वभाव का भी अपना एक महत्त्व है, परुषार्थ का भी अपना एक मल्य है। किन्त कुछ ऐसा हुआ-उसे एकदम असंतुलित बना दिया गया। सबको परदे के पीछे धकेल दिया गया और कर्म को सबका सर्वोपरि नेता बना दिया गया। यह बड़ी भूल हुई है और इसी कारण कर्मवादी का मतलब कोरा भाग्यवादी हो गया। पुरुषार्थ कुछ भी नहीं, सब कुछ भाग्य के भरोसे है। बहत सारे ट्रकों पर लिखा होता है-रामभरोसे। जब-जब मैं इस वाक्य को देखता हूं, मन में आता है-रामभरोसे क्यों लिखा? यह क्यों नहीं लिखा-मेरे भरोसे। अगर व्यक्ति शराब पीकर ट्रक नहीं चलाएगा तो ट्रक अच्छा चलेगा और उसे शराब पीकर चलाएगा तो रामभरोसा काम नहीं आएगा, अपना भरोसा भी धोखा दे जाएगा। भरोसा सबसे पहले अपने आप पर करना चाहिए। खतरनाक है दूसरों के सहारे ऊपर उठना
जो व्यक्ति अपने आप भरोसा नहीं करता, उसके भगवान का भरोसा, गरु का भरोसा और धर्म का भरोसा भी कोई काम नहीं आता। ये भरोसे भी उसी के काम में आते हैं जो अपने आप पर भरोसा करना जानता है।
आचार्यश्री बंबई में चातुर्मास कर रहे थे। एक दिन आचार्यश्री ने कहा-समुद्राष्टक लिखो, समुद्र पर अष्टक लिखो। मैंने. समुद्राष्टक लिखा। उसकी एक पंक्ति है- अन्यालंबनतो यदूर्ध्वगमनं तन्नास्ति रिक्तं भयात्।
दूसरों के सहारे जो ऊर्ध्वगमन होता है, वह भय से खाली नहीं होता। दूसरे का सहारा लेने की बात दूसरे नम्बर पर है। पहले नम्बर पर बात है – अपना सहारा लेना, अपना भरोसा करना, अपने कर्तृत्व पर विश्वास करना, अपने भाग्य की डोर अपने हाथ में थामे रखना। यह स्थिति तब बनती है जब हम अध्यात्म को समझें, आत्मा को समझें, 'संपिक्खए अप्पगमप्पएणं' इस सचाई को समझें। आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें-इस सूत्र को समझे बिना यह स्थिति समझ में नहीं आती और इसीलिए धोखा बहुत होता है। कोई कहता है-मेरे भाई ने मुझे बहुत धोखा दिया। कोई कहता है-मेरी पत्नी ने मुझे धोखा दिया। न जाने कितनी बार ऐसी बातें हम सनते रहते हैं। व्यक्ति दूसरे पर धोखा देने का आरोपण कर स्वयं बचना चाहता है पर यह नहीं सोचता-सबसे बड़ा धोखा मैंने अपने आपको दिया है। जो व्यक्ति अपने
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