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________________ अपने आपको जानें इसका कारण है-पारिणामिक भाव। वह ऐसी छत्रछाया बनाए हुए है, जिसमें सुरक्षित अस्तित्व सारी बाधाओं को झेल रहा है, तूफानों को झेल रहा है, हवा के झोंकों को झेल रहा है। वह अपने अस्तित्व की सुरक्षा और अभिव्यक्ति में सक्षम बना हुआ है। कोई उसे बुझा नहीं सकता। जिन लोगों ने पारिणामिक भाव को समझा है, उन्होंने अपने अस्तित्व को समझा है। जो लोग पारिणामिक भाव को नहीं जानते, वे अपने अस्तित्व को भी नहीं जानते। भ्रान्त दृष्टिकोण हमारा अस्तित्व कर्मों से बनने-बिगड़ने वाला अस्तित्व नहीं है। अपने भ्रान्त दृष्टिकोण के कारण हमने सारा भार कर्म पर लाद दिया। ईश्वरवादी दर्शनों ने जो मूल्य ईश्वर को दिया, जैन दर्शन ने वही मूल्य कर्म को दे दिया। केवल इतना अन्तर आया-हमने ईश्वरवाद के स्थान पर कर्मवाद को बिठा दिया। केवल व्यक्ति बदला और कुछ नहीं बदला। जो आज तक अध्यक्ष था, उसे हटाया और उसके स्थान पर नए अध्यक्ष को बिठा दिया। एक नए मख्यमंत्री का चयन कर उसे मुख्यमंत्री के आसन पर बिठा दिया। इससे मात्र व्यक्ति का परिवर्तन हुआ किन्तु और कोई बदलाव नहीं आया। जैन दर्शन का महान् सिद्धांत है आत्मकर्तृत्ववाद। जैन दर्शन ने उसका जितना विकास किया है शायद उतना किसी अन्य दर्शन ने नहीं किया। अनेक दर्शनों ने कर्म को अतिरिक्त मल्य दिया। जैन दर्शन को मानने वाले भी इस प्रवाह से अपने आपको नहीं बचा सके। हम कर्म को सर्वथा अस्वीकार नहीं करते। उसका जितना मल्य है उतना उसे दिया जा सकता है किन्तु उसे ही सब कुछ नहीं माना जा सकता। हमारे जीवन की घटनाओं में कर्म का स्थान बीस-पच्चीस प्रतिशत हो सकता है किन्तु उनका शत-प्रतिशत कारण कर्म को ही माना जाए, यह उचित नहीं लगता। काम आता है अपना भरोसा हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले घटक तत्व अनेक हैं। उनमें कर्म भी एक है किंतु वह सब कुछ नहीं है। कर्म के अतिरिक्त और भी अनेक महत्वपूर्ण तत्व हैं जो हमें प्रभावित करते हैं। जैन दर्शन ने जीवन के परिवर्तन में अनेक तत्वों के महत्त्व को स्वीकार किया है। प्रत्येक घटना के साथ काल का भी अपना एक महत्त्व जुड़ा हुआ है। नियति का For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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