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________________ 132 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा और मोक्ष प्रकृति में होता है। आत्मा बिल्कुल शुद्ध, बुद्ध और मुक्त रहता है। यदि सांख्य-दर्शन की इस बात को स्वीकार करें तो वाटसन की बात केवल भौतिक जगत् पर लागू होगी, आत्मा पर लागू नहीं होगी। यदि हम आत्मा को परिणामी मानें तो वाटसन की बात समझ में नहीं आती। यदि हमारा कछ भी नहीं है तो हम परिस्थिति के हाथ की कठपुतली मात्र हैं। जैसी परिस्थितियां मिलीं, हम वैसे ही बन गए इसीलिए हमारा अपना कोई अस्तित्व नहीं है। यह बात समझ से परे है। आनुवंशिकी विज्ञान की स्वीकृति बिना वृत्ति का कोई आदमी नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति में अच्छी या बुरी कोई न कोई वृत्ति जन्मना अवश्य मिलेगी। प्रत्येक आदमी अपनी वृत्तियों के साथ जन्म लेता है। आज के आनुवंशिकी विज्ञान (जेनेटिक साइंस) में यही बात कही जाती है-प्रत्येक व्यक्ति अपने पैतक संस्कारों के साथ जन्म लेता है, गणसूत्र और जीन के साथ जन्म लेता है। पैतृक गुणों की स्वीकृति वर्तमान विज्ञान दे रहा है। यदि हम कर्म-सिद्धान्त के आधार पर चलें तो इससे आगे की बात स्वीकृत हो जाएगी, अतीत की स्वीकृति हो जाएगी। यह बात प्रामाणिक लगती है कि जो व्यक्ति जन्म लेता है, वह अच्छाई या बराई के बीजों के साथ जन्म लेता है। अपनी थाती, अपनी धरोहर, अपनी विरासत, अपनी पैतृक संपत्ति को साथ लेकर आता है और उसके साथ अपने जीवन का प्रारंभ करता है। जीवन मूलप्रवृत्ति : मृत्यु मूलप्रवृत्ति __ यह सचाई है-अच्छाई और बुराई-दोनों की वृत्तियां प्रत्येक व्यक्ति के साथ रहती हैं। वृत्तियां दो ही हैं-एक अच्छाई की और एक बुराई की। इसे इस भाषा में भी कहा जा सकता है- एक है राग की वत्ति और एक है द्वेष की वृत्ति। मनोविज्ञान में वृत्तियों का जो विस्तार किया गया है, वह सापेक्ष बात है। अपेक्षा के साथ वृत्तियों के चाहे जितने प्रकार किये जा सकते हैं। फ्रायड ने बहत विश्लेषण के बाद अपनी विश्लेषणवादी पद्धति में बतलाया-वास्तव में दो ही वृत्तियां हैं जीवनमूलक प्रवृत्ति और मृत्युमूलक प्रवृत्ति। शेष सब इन दोनों का विस्तार है। भूख, सेक्स, प्यास आदि आदि जीवन-मूलक प्रवृत्तियां हैं। संघर्ष, झगड़ा, कलह आदि आदि मृत्यु-मूलक प्रवृत्तियों में समाविष्ट हो जाते हैं। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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