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मौलिक मनोवृत्तियां
मानसिक चिकित्सा की एक सौ पचास पद्धतियां हैं। उनमें एक है व्यवहारवादी पद्वति। इस पद्धति के अनुसार कोई भी व्यक्ति अच्छा नहीं होता, बुरा नहीं होता। बच्चा जन्म से न अच्छा होता है, न बुरा होता है। उसे जैसा वातावरण मिलता है, जैसी परिस्थिति मिलती है, वह उसके अनुरूप अच्छा या बुरा बन जाता है। व्यवहारवादी पद्धति का अभिमत
वाटसन ने कहा-यदि मुझे वातावरण पर पूरा अधिकार मिल जाए तो मैं चाहे जैसे व्यक्तित्व का निर्माण कर सकता हूं। यह व्यवहारवादी पद्धति का अभिमत है। यदि हम आत्म-विज्ञान की दृष्टि से विचार करें तो कुछ नई बातें सामने आएंगी। यदि आदमी जन्मना अच्छा या बुरा नहीं होता है तो अतीत के बोझ एवं संग्रह की सारी चर्चा व्यर्थ हो जाएगी, अतीत के साथ हमारा कोई संबंध नहीं रह जाएगा। जैसा वर्तमान का वातावरण, जैस वर्तमान की परिस्थिति, वैसी हमारी निर्मिति। यदि ऐसा व्यक्तित्व अस्तित्व में आ जाए, जो अच्छा या बुरा कुछ भी नहीं हो तो दुनियां का एक बड़ा आश्चर्य हो जाए किन्तु ऐसा होता नहीं है। परिस्थितियां उद्दीपन कर सकती हैं, वातावरण निमित्त बन सकता है किन्तु मूल कारण के अभाव में उनका प्रभाव नहीं होता। निमित्त : मूल कारण
उद्दीपन और निमित्त का होना एक बात है और मूल कारण का होना बिल्कुल दूसरी बात है। यदि मूल कारण ही नहीं है तो किसका उद्दीपन होगा? किसका वातावरण होगा? इस स्थिति में आत्मा के अस्तित्व का प्रश्न भी पैदा हो जाएगा। आत्मा का अपना कर्तृत्व भी कुछ नहीं रह पाएगा। व्यक्ति के हाथ में कछ भी नहीं है, न आत्मा, न आत्मा का कर्तृत्व, सब कुछ परिस्थिति के हाथ में है।
सांख्य दर्शन में आत्मा को मानते हए भी यह माना गया-सारा बंध Jain Education International For Private & Personal Use Only
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