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________________ 126 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा कषाय का इतना उद्दीपन है वहां सामान्य की बात कैसे करें? संबंधों में सामंजस्य बिठाकर उन्हें मधर रखना बहुत कठिन बात है। जब कषाय का चूल्हा निरन्तर जलता रहता है तब संबंधों की मधुरता कैसे बनी रह सकती है? हमारा व्यक्तित्व कैसे सामान्य बना रह सकता है? यह एक बड़ा प्रश्न है। यदि अतीत का बोझ कम हो तो कुछ अन्तर आ सकता रूढ़ मान्यताएं क्यों? सामान्य व्यक्तित्व की दसरी कसौटी है-अतीत का संग्रह कम हो। हमने दिमाग को कितना भर रखा है! धारणाओं, मान्यताओं और कल्पनाओं का ढेर लगा हुआ है। समाज में कितनी रूढ़ मान्यताएं चल रही हैं। पति मर गया और पत्नी न रोए तो लोग क्या कहेंगे? समाज कहेगा-यह तो मारना ही चाहती थी। इसे कोई द:ख ही नहीं है। समाज की इस मान्यता से प्रभावित होकर लोग रोते हैं। वह रोना दःख का रोना नहीं है। वह है धारणा का रोना, सामाजिक मान्यता का रोना। अगर न रोया जाए तो अच्छा नहीं लगेगा। हमने ऐसी अनेक सामाजिक रूढ़ियां बना रखी हैं। प्रदर्शन की भावना क्यों? प्रदर्शन की भावना क्यों चलती है? समाज में बड़प्पन के कुछ मानदंड बने हए हैं। उन मानदंडों के अनसार सब-कछ होता है तो व्यक्ति बड़ा आदमी कहलाता है। ऐसा नहीं होता है तो आदमी साधारण कहलाता है। ये बड़प्पन के मानदण्ड और उसके आधार पर प्रदर्शन एवं सामाजिक कचेतनाएं बराबर चल रही हैं। एक भाई ने अपने होने वाले समधी से कहा-मैं दहेज लेने के पक्ष में नहीं हूं पर यदि आपने कुछ नहीं दिया तो इसमें हल्की आपकी ही लगेगी। इसीलिए एक सामाजिक धारणा बनी हई है, उसके साथ-साथ व्यक्ति के भीतर का लोभ भी बोल रहा है। यह अतीत का संग्रह, विचारों का संग्रह, धारणाओं का संग्रह इतना भारी बना हुआ है, आदमी नीचे दबता चला जा रहा है। इस स्थिति में हम कैसे मानें-हमारा व्यक्तित्व सामान्य है? अतीत के संग्रह को कम किए बिना सामान्य व्यक्तित्व की कल्पना सम्भव नहीं है। निर्ग्रन्थता सामान्य व्यक्तित्व की तीसरी कसौटी है-निग्रंथ होना। यदि सामान्य व्यक्तित्व का निर्माण करना है तो निर्ग्रन्थ बनना ही होगा। जैनागमों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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