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ध्यान क्यों करें? महावीर के लिए एक विशेषण आता है-निग्गंथे णायपुत्ते-निर्ग्रन्थ महावीर। निर्ग्रन्थ का कन्सेप्ट बहुत महत्त्वपूर्ण है। जिस दिन व्यक्ति निर्ग्रन्थ बनने की दिशा में प्रस्थान करेगा, उसी दिन सामान्य जीवन जीने का, सामान्य व्यक्तित्व के विकास का क्रम शुरू होगा। जब तक गांठे ही गांठे भरी पड़ी हैं, सौन्दर्य कैसे आएगा? निर्ग्रन्थ का अर्थ है-न क्रोध की ग्रन्थि, न अहंकार की ग्रन्थि, न लोभ की ग्रन्थि। निर्ग्रन्थता का रहस्य है-मोह-मूर्छा से पैदा होने वाली जितनी ग्रन्थियां हैं, वे सारी खुल जाएं। जो व्यक्ति निग्रंथ जीवन जीना शुरू करता है, वह सामान्य बन सकता है। ग्रन्थि और व्यवहार
एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है-मानवीय सम्बन्धों में सुधार कैसे आए? घोर अपराध, हत्याएं, चोरियां, लूट-पाट और बलात्कार की घटनाएं वर्तमान समाज में चल रही हैं। यह सब क्यों हो रहा है? जितने प्रकार के अपराध हैं, उतनी ही प्रकार की ग्रन्थियां हैं। हम गणित की भाषा में कह सकते हैं-हमारे हजार व्यवहार हैं तो हमारे भीतर हजार ग्रन्थियां हैं। जब तक ये गांठें नहीं खलती तब तक व्यक्ति सामान्य धरातल पर नहीं आ सकता। प्रत्येक विचार और आचरण के साथ भीतर में एक गांठ बन जाती है। हमारा कोई भी विचार ऐसा नहीं है, जो एक गांठ न छोड़ जाए। निर्ग्रन्थ होना सामान्य व्यक्तित्व की एक दिशा है। सम्बन्धों का सफल अभियोजन
अतीत के बोझ को कम करना, अतीत के संग्रह को कम करना और गांठों को खोलना-इन तीन कसौटियों पर खरा उतरने वाला व्यक्तित्व सामान्य व्यक्तित्व बनता है। अगर अतीत का बोझ अधिक है तो आत्मिक आनंद के स्थान पर विषाद की प्राप्ति होगी, अवसाद (Depression) होगा, कलह होगा। मानसिक कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए मन को विराम देना होगा, अतीत के बोझ को कम करना होगा।
सामान्य व्यक्तित्व की तीसरी कसौटी है-संबंधों का सफल अभियोजन। जब तक भीतर में भयंकर क्रोध का समावेश है तब तक ऐसा होना संभव नहीं है। यदि कोध प्रबल है, कषाय प्रबल है तो घर नरक बन जाता है। जब ये सब उपशांत होते हैं तब घर स्वर्ग बन जाता है। जब तक भीतर की ये गांठें नहीं खुलेंगी तब तक सामाजिक संबंधों का सामान्यीकरण, सफल अभियोजन संभव नहीं बन पाएगा इसलिए
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