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ध्यान क्यों करें?
बंध का कारण
आचार्य कुन्दकुन्द ने लिखा- एक व्यक्ति कायिक चेष्टा करता है। वह पहले शरीर पर पूरा तेल लगाता है फिर अखाड़े में जाकर व्यायाम करता है, धूल चिपक जाती है।
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जण णाम को वि पुरिसो णेहभत्तो दु रेणुबहुलम्म । ठाणम्मि ठाइदूण य करेदि सत्थेहिं वायामं 11 जो सो दु णेहभावो तम्हि णरे तेण तस्स रयबंधो । णिच्छयदो विण्णेयं कायचेट्ठाहिं से साहि // एवं मिच्छादिट्ठी वट्टंतो बहुविहासु चिट्ठासु 1 रायादि उवओगे कुव्वतो लिप्पदि रएण प्रश्न होगा - धूल क्यों चिपकी ? स्पष्ट है - यदि तेल चुपड़ा हुआ नहीं होता, धूल नहीं चिपकती । धूल आती और झड़ जाती। आत्म विज्ञान के अनुसार हर व्यक्ति एक तेल लगाए हुए है और वह है राग और द्वेष का तेल। कषाय का ऐसा अभ्यंग किया हुआ है कि व्यक्ति काषायिक बना हुआ है और एक खुला निमन्त्रण दिया हुआ है- धूलि आओ और चिपक जाओ । जब इतना चिपकाव और इतना बोझ सिर पर होता है तब व्यक्ति सामान्य कैसे रह सकता है?
मनोविज्ञान की भाषाः आत्मविज्ञान की भाषा
मानेविज्ञान में सामान्य और असामान्य की एक परिभाषा निर्धारित है । आत्मविज्ञान की दृष्टि से विचार करें तो शायद किसी को सामान्य कहना कठिन है। जिसमें पूरा सम्यग् दर्शन जाग गया, वीतराग चेतना की काफी झलक आ गई, वह सामान्य व्यक्ति है। मनोविज्ञान का सामान्य व्यक्ति आत्मविज्ञान की भाषा में बिल्कुल असामान्य बन जाएगा। किसी ने एक भी अप्रिय बात कह दी, व्यक्ति झगड़ा करने को तैयार हो जाएगा । किसी ने प्रिय बात कह दी तो राग का उद्दीपन हो जाएगा। यदि पत्नी ने खाना बढ़िया बना दिया तो व्यक्ति उसे रस लेकर खाएगा और भूख से ज्यादा खाएगा। यह राग का उद्दीपन है। यदि रसोई रुचिकर नहीं बनी तो क्रोध का उद्दीपन हो जाएगा, व्यक्ति थाली, को ठोकर मार देगा। ऐसा क्यों होता है ? इसका कारण है - व्यक्ति सामान्य नहीं है। नमक ज्यादा होता है तो क्रोध आ जाता है और नमक कम होता है तो भी क्रोध आ जाता है । दोनों ओर क्रोध की संभावना बनी रहती है । हम व्यक्ति को सामान्य कैसे मानें? यह बहुत बड़ी समस्या है। जहां
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