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समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा व्यक्ति यह विश्लेषण कर सकता है कि मेरा अपने माता-पिता, भाई या पत्नी के साथ संबंध कैसा है ? मधुर है या कटुतापूर्ण है? अन्य परिजनों के साथ संबंध कैसा है ? निरीक्षण करने पर पता चलेगा - जैसा होना चाहिए, वैसा संबंध तो बहुत कम है। प्रारंभ में संबंध थोड़ा मधुर होता है, शनैः-शनैः संबंधों में कड़वाहट आती चली जाती है। जैसे-जैसे स्वार्थ वृत्ति का विस्तार होता है, संबंध कड़वे होते चले जाते हैं। एक समय ऐसा आता है, संबंध एक खतरा बन जाता है, मानसिक तनाव का कारण बन जाता है।
सामान्य व्यक्तित्व की कसौटी
अर्नेस्ट जोंस ने सामान्य व्यक्तित्व की तीन कसौटियां बतलाई हैंआत्मिक आनन्द |
मानसिक कार्यक्षमता ।
सामाजिक संबंधों का सफल अभियोजन - सामाजिक संबंधों में ठीक प्रकार से सामंजस्य बिठा लेना ।
जो ऐसा जीवन नहीं जीता, वह असामान्य (Abnormal) जीवन होता है । सामान्य व्यक्तित्व को इन तीन कसौटियों के आधार पर जाना जाता है।
आत्म-विज्ञान के संदर्भ में देखें तो सामान्य व्यक्तित्व की पहली कसौटी होगी - अतीत के बोझ से मुक्त होना । जो व्यक्ति अतीत के बोझ से ज्यादा लदा हुआ नहीं है, वह सामान्य व्यक्ति है। अपने किए कार्यों के बोझ की ऐसी भारी गठरी है कि आदमी उससे दबता चला जाता है, असामान्य बनता चला जाता है। जिसके सिर पर अतीत का बोझ कम होता है, वह सामान्य व्यक्ति होता है। हर व्यक्ति संस्कारों को लिए हुए है । एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो संस्कारातीत जीवन जी रहा हो । केवल वीतराग ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है। वीतराग एक ऐसी ऊंचाई पर पहुंची हुई चेतना है, जहां पहुंचने पर सारे संस्कार समाप्त हो जाते हैं। इस अवस्था में अतीत का कोई संस्कार नहीं रहता और न वर्तमान में कोई नया संस्कार बनता है। जो बाहर से आता है, वह चला जाता है हम इसे पारिभाषिक शब्दों में ईर्यापथिकी क्रिया कह सकते हैं। इसका अर्थ है-रेत आई और नीचे गिर गई, चिपक ही नहीं पाई। वह तब चिपकती है जब चिकनाहट होती है या मिट्टी गीली होती है तो वह चिपक जाती है।
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