________________
ध्यान क्यों करें? एक सामाजिक प्राणी समूह में जीता है। समूह की सबसे छोटी इकाई है अपना परिवार। परिवार के साथ संबंध कैसे हैं? इसका सबसे पहले आत्म-निरीक्षण करें। हम यह भी आत्म-निरीक्षण करें-स्वयं के साथ हमारा संबंध कैसा है? यह बड़ा जटिल प्रश्न है। व्यक्ति अपने साथ भी अच्छा संबंध स्थापित नहीं कर पाता है इसीलिए वह खंडित व्यक्तित्व में जीता है। अखंड व्यक्तित्व में जीना सहज सरल नहीं है। धर्म, ध्यान और अध्यात्म की कसौटी है कि व्यक्ति परिवार के साथ कैसा संबंध स्थापित करता है? दर्शन को जानना, सिद्धान्त को समझना एक बात है, उसे जीना बिल्कुल दूसरी बात है। जब तक दर्शन और सिद्धांत को जिया नहीं जाता, वह केवल कल्पना बनकर ही रह जाता है, यथार्थ के धरातल पर उसका बहुत मुल्य नहीं होता। यदि यथार्थ का जीवन जीना है तो हमें संबंधों पर विचार करना होगा। संबंध का जीवन
सामाजिक जीवन का मतलब है संबंधों का जीवन। मुनि जीवन का मतलब है संबंधातीत जीवन। जहां संयोग और संबंध को मान्यता प्राप्त है, वह है सामाजिक जीवन। जहां केवल अकेलेपन को मान्यता प्राप्त है वह है एक त्यागी, संन्यासी और मुनि का जीवन। इसीलिए कहा गया
संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो। मुनि संयोगों से मुक्त होता है और गृहस्थ संयोगों का जीवन जीता है। व्यक्ति अकेला जन्म लेता है। माता-पिता का एक संयोग हुआ, एक संबंध हो गया। भाई-बहिन, चाचा-ताऊ-ये संबंध विकसित होते चले गए। व्यक्ति के बड़ा होने पर ससराल पक्ष का एक संबंध और जड़ता है। इस प्रकार वह संबंधों की अनगिनत श्रृंखलाओं से जुड़ता है कैसे हैं संबंध? संबंधों का जीवन कैसा जिया जा रहा है? यह एक बड़ा प्रश्न है। हर
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org