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________________ 108 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा खाते चले जा रहे हैं। वे जानते हैं-चीनी खाने से अम्लता बढ़ेगी, और भी अनेक हानियां होंगी फिर भी वे चीनी छोड़ना नहीं चाहते। यह है आग्रह-चेतना। सब लोग जानते हैं-जर्दा या तंबाक खाना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद नहीं है, शरीर और मन के लिए नुकसानदेह है फिर भी अनेक व्यक्ति जर्दा और तंबाकू का व्यसन पाले हुए हैं। आग्रह और समझ यह आग्रह-चेतना बहुत भयंकर होती है। व्यक्ति इसमें उलझ जाता है। यह तथ्य है-सबमें समझ समान नहीं होती। सबका ज्ञान समान नहीं होता। सबमें चिन्तनधारा समान विकसित नहीं होती। कछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनका मस्तिष्क अविकसित होता है, अत्यन्त स्वल्प विकसित होता है। ऐसी स्थिति में जिद्द का होना, जिद्दी स्वभाव का होना स्वाभाविक है। यह प्रायः देखा गया है-जो व्यक्ति जितना ज्यादा नासमझ है, जितना ज्यादा चिंतन-शून्य है, जितना ज्यादा अज्ञानी है उसमें उतना ही ज्यादा आग्रह होता है, पकड़ और जिद्द होती है। जैसे-जैसे आदमी समझदार होता है, उसमें बुद्धि और चिन्तन का विकास होता है, समझने की क्षमता बढ़ती है वैसे-वैसे आग्रह की वृत्ति छूटती चली जाती है, अनाग्रह का भाव विकसित होता चला जाता है। अनाग्रह : वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास सत्य की खोज का सबसे बड़ा साधन है-अनाग्रह। जिसमें अनाग्रह की वत्ति नहीं होती, वह सत्य की खोज में कभी आगे नहीं बढ़ सकता। एक वैज्ञानिक कभी भी किसी एक बात को पकड़कर या मानकर नहीं बैठ जाता। वह एक बार उस बात को आधार अवश्य बनाता है, उसके बाद अनसंधान करता है, परीक्षण करता है और उसका जो निष्कर्ष आता है, उसे बिना किसी संकोच के स्वीकार कर लेता है। एक वैज्ञानिक कभी यह नहीं कहता-मेरी यह मान्यता है, मैं इसे कभी नहीं छोडूंगा। उसमें अपनी बात की पकड़ नहीं होती, आग्रह नहीं होता। इसका कारण है वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास। आज धार्मिक व्यक्ति में भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास की बहुत जरूरत है। धार्मिक कहलाने वाले लोग भी ऐसे हैं, जो एक बात को पकड़ लेते हैं तो पकड़ ही लेते हैं, उसे छोड़ना नहीं चाहते। वे नई बात को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं होते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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