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समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा होगी। प्रत्येक बालक में यह चेतना जगा दी जाए- मैं अकेला हं, मेरी आत्मा अकेली है, मेरी आत्मा ज्ञान-दर्शनमय है। मेरी आत्मा चेतनामय है। इसके अलावा मेरा कुछ भी नहीं है। न कुछ अपने साथ लाया हूं, न कुछ साथ में जाने वाला है। जो कुछ प्राप्त है, वह मात्र संयोग है।
एगो मे सासओ अप्पा, नाणदसणलक्खणो।
सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा।। जब अध्यात्म की चेतना जागती है, स्वार्थ परमार्थ में बदल जाता है। अध्यात्म- चेतना की जागति का अर्थ है- 'मैं अकेला हं', इस सत्य की अनुभति हो जाए। इस स्थिति में स्वार्थ-चेतना मंद होती चली जाती है। व्यक्ति के मन में यह भावना नहीं जागती कि दूसरे का हक लूटा जाए , दूसरे का हिस्सा हड़प लिया जाए। शांतिपूर्ण जीवन का रहस्य
यदि हम दसरे के साथ रहना चाहते हैं तो हमारी सबसे पहली आवश्यकता होगी- अध्यात्म की चेतना का विकास। हम अकेले हैं,' 'अकेले आए हैं', 'अकेले जाना है'- हमारे भीतर यह संस्कार, यह भावना जितनी परिपक्व होगी, हम उतना ही परिवार या समूह के साथ शांतिपूर्ण जीवन जी सकेंगे। समयसार का यह सूत्र शांतिपूर्ण सहवास का भी महत्त्वपूर्ण सूत्र है। अध्यात्म की उपेक्षा कर, धर्म की उपेक्षा कर कोई भी व्यक्ति शांतिपूर्ण जीवन नहीं जी सकता। सामुदायिक जीवन के प्रयोग साम्यवादियों ने किए किन्तु वे विफल हो गए। अध्यात्म साथ में होता तोसाम्यवाद विफल नहीं होता। इस सचाई के आलोक में हम अध्यात्म का मूल्यांकन करें, अध्यात्ममय जीवन जीने का प्रयोग करें, शांतिपूर्ण पारिवारिक एवं सामुदायिक जीवन का रहस्य हमारे हाथ में होगा।
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