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९० / जैन दर्शन के मूल सूत्र
यह यहीं पाया जाता है।
२. बायोप्लाज्मा की सर्वाधिक गतिविधियां सुषुम्ना नाड़ी और स्नायविक कोशिकओं में रहती है। सुषुम्ना नाड़ी में यह अधिक क्रियाशील रहता है।
३. स्नायुओं के केन्द्र स्थान में यह अधिक मात्रा में पाया जाता है।
इन निष्कर्षों के आधार पर वे दृढ़तापूर्वक यह स्वीकार करते हैं कि बायोप्लाज्मा का अस्तित्व है और यह भारतीय दर्शन के सूक्ष्म शरीर से बहुत साम्य रखता है। ___ शरीर की नश्वरता एवं प्रोटोप्लाज्मा की अमरता को भी वैज्ञानिक जगत में स्वीकृति मिल चुकी है। उनका कहना है-हमारा सारा शरीर कोशिकाओं द्वारा बना है। प्रत्येक कोशिका में 'प्रोटोप्लाज्म' नामक एक तरल एवं चिकना पदार्थ होता है। इस प्रोटोप्लाज्म के द्वारा दूषित वायु बाहर आती है और ताजी हवा अन्दर जाती है। हमारी सांस के साथ करोड़ों की संख्या में ये प्रोटो-प्लाज्म कण विद्यमान रहते हैं। इन प्रोटोप्लाज्म कणों में 'न्यूक्लीयस' नामक अन्य पदार्थ होता है, जो मानव शरीर को जीवन शक्ति प्रदान करता है। कोशिकाओं को पुष्ट करने में सहायक होता है। जब न्यूक्लीयस पदार्थ क्षीण होता है तब प्रोटोप्लाज्म कण क्षीण होने लग जाते हैं। ये कण क्षीण होते-होते अकस्मात खत्म हो जाते है और इनसे मूल चेतना गायब हो जाती है। ___मृत्यु के पश्चात प्रोटोप्लाज्म शरीर से अलग होकर वायुमण्डल में प्रविष्ट हो जाता है। वहां से यह खेतों-खलिहानों के माध्यम से वनस्पति में पहुंचता है। उसके बाद फल-फूल, अनाज आदि में प्रविष्ट होकर भोजन के साथ मनुष्य के शरीर में चला जाता है। ये ही प्रोटोप्लाज्म कण 'जीन्स' में परिवर्तित होकर नए शिशु के साथ पुनः जन्म लेते हैं।
विज्ञान सम्बन्धी खोजों ने इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि व्यक्ति का पुनर्जन्म संभव है। प्रयोगशालाओं में किए गए अनेक प्रयोगों के पश्चात वैज्ञानिक इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि मरणोपरान्त कोई ऐसा सूक्ष्म तत्त्व रह जाता है, जो इच्छानुसार पुनः किसी भी शरीर में प्रवेश कर
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