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आत्मवाद और पुनर्जन्म/ ९१
एक नए शरीर को जन्म दे सकता है।
लन्दन के प्रसिद्ध डॉ. डब्ल्यू जे. किल्लर ने अपनी पुस्तक 'दी ह्यमन एट्मास्फियर' में ऐसे अनेक प्रयोगों का वर्णन किया है, जो उन्होंने मरणान्त मरीजों की जांच करते समय किए थे। उनका निष्कर्ष है-'मानव देह में एक प्रकाशपुंज का अस्तित्व अवश्य रहता है जो मृत्यु के बाद यथावत रहता है।
सोवियत वैज्ञानिकों ने पुनर्जन्म की स्वीकृति को महत्त्व प्रदान करते हुए आत्म-विश्वास भरे स्वरों में कहा- 'जीवधारियों में प्रकाश-पुंज कोई सूक्ष्म-शक्ति या कोई अदृश्य शरीर भौतिक शरीर को आवृत किए रहता है। इसका प्रमाण हमको मिल गया है।' इस प्रकाश पुंज को 'इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप' द्वारा देखा गया। इसके द्वारा उन्होंने मरणान्त जीवधारी पर ऐसी चीज डिस्चार्ज होते देखी है, जिसे पहले क्लेयर वोमेटस ही देख पाते थे। जीवित शरीर में ही उनको उसी शरीर की प्रतिकृति देखने को मिली है। यही प्रतिकृति विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों में समा जाती है। इस अदृश्य शरीर की एक विशिष्ट संरचना है।
आत्मा से सम्बद्ध खोज एवं प्रयोग विज्ञान के क्षेत्र में अभी जारी हैं। अब तक आत्मा के सन्दर्भ में विज्ञान द्वारा स्वीकृत महत्वपूर्ण तथ्य
१. पूर्वजन्म है, पुर्नजन्म है। २. प्रोटोप्लाज्म ही आत्मा है और वह नष्ट नहीं होता। ३. भौतिक शरीर के भीतर कोई अदृश्य शरीर है।
पूर्वजन्म-पुनर्जन्म एवं आत्मा की अमरता की स्वीकृति से आत्मवाद के प्रमाणित होने की संभावनायें बढ़ती हैं।
वैज्ञानिकों ने प्रोटोप्लाज्म को आत्मा माना है। उसके उन्होंने जो लक्षण बतलाए हैं उसके आधार पर उसे जैन दर्शन का सूक्ष्म शरीर कहा जा सकता है, आत्मा नहीं। सूक्ष्म शरीर पुनः जन्म लेता है। प्रोटोप्लाज्म भी पुनः 'जीन्स' में परिवर्तित होकर शरीर धारण करता है। सूक्ष्म शरीर न द्रव है, न गैस है, न ठोस है। प्रोटोप्लाज्म भी इनसे भिन्न है । सूक्ष्म शरीर
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