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आत्मवाद और पुनर्जन्म/ ८९
भगवान महावीर ने कहा- 'जैसे पुर्वजन्म का संज्ञान नहीं होता वैसे ही अनके व्यक्ति पुनर्जन्म को नहीं जानते। उन्हें यह ज्ञात नहीं होता कि मेरी आत्मा औपपातिक है, पुनर्जन्म लेने वाली है। यहां से च्युत होकर मैं कहां जाऊँगा।
आत्मवाद के ये चार मूल आधार हैं१. मैं कौन हूं? २. मैं कहां से आया हूं? ३. क्या मेरी आत्मा पुनर्भवी है? ४. मैं कहां जाऊंगा?
आत्मा थी या नहीं? आत्मा होगी या नहीं? क्या आत्मा का अस्तित्व है? आत्मा क्या है? क्या आत्मा और पदार्थ एक है? आत्मा का पदार्थ से क्या सम्बन्ध है-इन प्रश्नों पर आज के वैज्ञानिकों द्वारा की गयी खोजें भी महत्त्वपूर्ण हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से पदार्थ की तीन अवस्थायें मानी जाती थीं-ठोस, द्रव और गैस । उसके बाद चौथी अवस्था 'प्लाज्मा को भी स्वीकार किया गया। फिर पांचवीं अवस्था और खोजी गई- प्रोटोप्लाज्म। यानि जैव प्लाज्म । प्रोटोप्लाज्म की तुलना प्राण से की जा सकती है। हमारी जो प्राण शक्ति है, वही प्रोटोप्लाज्म है।
सोवियत संघ के भौतिकी शास्त्रवेता श्री वी.सी. ग्रिश्चेको का कहना है- 'जैव प्लाज्म में स्वतन्त्र इलेक्ट्रोन और स्वतन्त्र प्रोटोन होते हैं, जिनका अस्तित्व स्वतन्त्र होता है और जिनका नाभिक के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता । इनकी गति बहत तीव्र होती है और दूसरे जीवधारियों में शक्ति संवहन करने में यह सक्षम होता है। यह मानव की सुषुम्ना नाड़ी में एकत्रित रहता है । यह टैलीपैथी मनोवैज्ञानिक और मनोगति की प्रक्रिया से मिलता जुलता है।'
सोवियत वैज्ञानिकों ने बायोप्लाज्मा से सम्बन्धित निम्न निष्कर्ष निकाले हैं
१. प्लाज्मा का मूल स्थान मस्तिष्क है और सबसे सघन अवस्था में
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