________________
आत्मवाद और पुनर्जन्म/ ८७
नहीं मानते।
चार्वाक आदि दर्शन तीसरे विकल्प को स्वीकार करते हैं। वे आत्मा को वार्तमानिक मानते हैं पर परमात्मा एवं पुनर्जन्म के अस्तित्व को अस्वीकार करते हैं। उनके अनुसार शरीर ही आत्मा है। . आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार कर लेने पर भी प्रश्न सहज उपस्थित होता है कि जीव कहां से आया है? कौन था? उसे अपने पुनर्जन्म का ज्ञान नहीं है। भगवान महावीर ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा-'अनेक मनुष्यों को यह संज्ञा नहीं होती कि वे किस दिशा से आये हैं।'
प्रस्तुत प्रसंग में मुख्यतः दो शब्दों पर विमर्श करना आवश्यक है-संज्ञा और दिशा। ___ संज्ञा का सामान्य अर्थ है-संवेदन। जैन दर्शन में दस प्रकार की संज्ञाओं का वर्णन मिलता है। संज्ञा का दूसरा अर्थ है-स्मृति का ज्ञान। संज्ञान, स्मृति और अवबोध-संज्ञा के पर्यायवाची शब्द हैं। प्रस्तुत संदर्भ में संज्ञा का अर्थ है-स्मृति का ज्ञान।
आचारांग नियुक्ति में भाव संज्ञा के दो भेद उपलब्ध होते हैं१.ज्ञान संज्ञा-मतिज्ञान आदि पांच ज्ञान को ज्ञान संज्ञा कहा जाता
२. अनुभव संज्ञा-स्वकृत कर्म के उदय से होने वाला संवेदन अनुभव संज्ञा है।
जो जाना जाता है, वह ज्ञान संज्ञा है तथा जो फल भोगा जाता है, वह अनुभव संज्ञा है।
दिशा शब्द पर प्राचीन काल में बहुत विचार किया गया है। मातापिता एवं गुरु को दिशा कहा गया है, आचार्य को भी दिशा कहा गया है।
दिशा के अनेक प्रकार हैंनाम दिशा-जैसे किसी व्यक्ति का नाम दिशा रख दिया।
स्थापना दिशा-किसी दिशा को स्थापित कर दिया। जैसे-मानचित्र आदि में विभिन्न प्रदेशों को विभिन्न दिशाओं में दिखाया जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org