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आत्मवाद और पुनर्जन्म
दर्शन का अर्थ है-तत्व का साक्षात्कार । सबसे प्रमुख तत्व आत्मा है। 'जो आत्मा को जान लेता है, वह सबको जान लेता है।' 'दर्शनं स्वात्मनिश्चिति' अपनी आत्मा का जो निश्चय है, वही दर्शन है।
दर्शन की आत्मा है अनुभव और उसकी प्रणाली युक्ति पर आधारित होती है। दर्शन तत्व के गुणों से सम्बन्ध रखता है, इसलिए उसे तत्त्व का विज्ञान कहा जाना चाहिए। युक्ति विचार का विज्ञान है। तत्त्व पर विचार करने के लिए युक्ति या तर्क का सहारा अपेक्षित होता है। दर्शन के क्षेत्र में तार्किक प्रणाली द्वारा आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म, पूर्वजन्म आदि तथ्यों की व्याख्या, आलोचना, स्पष्टीकरण या परीक्षा की जाती है।
अनेक व्यक्ति यह नहीं जानते कि मैं कहां से आया हूं? मेरा पुनर्जन्म होगा या नहीं? मैं कौन हूं? यहां से फिर कहां जाऊंगा?
भारतीय दर्शनों तथा पाश्चात्य दार्शनिकों ने इन प्रश्नों पर विचार किया है। इनके समाधान में मुख्यत: तीन मत प्रस्तुत हुए हैं
१. आत्मा है, पुनर्जन्म है। २. आत्मा-परमात्मा है, पुनर्जन्म नहीं है। ३. आत्मा है, परमात्मा और पुनर्जन्म नहीं है।
आत्मवादी/ पुनर्जन्मवादी परम्परा ने प्रथम विकल्प को मान्यता दी है। जैन दर्शन आत्मा और पुनर्जन्म के अस्तित्व को स्वीकार करता है। आत्मा की त्रैकालिक सत्ता है।
ईसाई, इस्लाम आदि दर्शन द्वितीय विकल्प का समर्थन करते हैं। वे आत्मा-परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, किन्तु पुनर्जन्म को
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