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६० / जैन दर्शन के मूल सूत्र
६. अति-सूक्ष्म
१. अति-स्थूल का उदाहरण है-पृथ्वी । उसका छेदन भेदन किया जा सकता है, उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।
२. स्थूल का उदाहरण है-जल। उसका छेदन भेदन नहीं किया जा सकता। किन्तु एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।
३. स्थूल-सूक्ष्म का उदाहरण है- छाया। उसका न छेदन-भेदन किया जा सकता है और न उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है किन्तु उसे आंखों से देखा जा सकता है।
४. सूक्ष्म स्थूल का उदाहरण है चक्षु के सिवाय शेष चार इन्द्रियों के ज्ञेय विषय।
५. सूक्ष्म का उदाहरण है कर्म वर्गणा के स्कंध। ६. अति सूक्ष्म का उदाहरण है परमाणु ।
विज्ञान के अनुसार पदार्थ कणात्मक और ऊर्जा तरंगात्मक है। कभी कण का ऊर्जा में और ऊर्जा का कण में परिवर्तन हो जाता है। जैन दर्शन के अनुसार कण (अथवा स्कंध) पुद्गल का एक पर्याय भी है इसलिए उनमें परिवर्तन संभव है। प्रत्येक द्रव्य में एक निश्चित अवधि के बाद परिवर्तन अवश्य होता है। कोई निमित्त मिलता है तो प्रायोगिक परिवर्तन होता है। कोई निमित्त न मिले तो वह परिवर्तन स्वाभाविक होता है। यह परिवर्तन का नियम सार्वभौम है। इसलिए नई-नई वस्तुओं की उत्पत्ति होती रहती है।
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