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५६ / जैन दर्शन के मूल सूत्र
पुद्गल मिले, मिट्टी का निर्माण हो गया। यह जल क्या है? कुछ प्राणी
और कुछ परमाणु स्कन्ध मिले, जल का निर्माण हो गया। यह अग्नि क्या है? कुछ प्राणी और कुछ परमाणु स्कन्ध मिले, अग्नि का निर्माण हो गया। हवा क्या है? कुछ प्राणी और कुछ पुद्गलों का योग है। यह वनस्पतिजगत क्या है? इसका उत्तर यही है। कुछ जीव और कुछ पुद्गल मिले, इतना बड़ा वनस्पति जगत बन गया। यह त्रस जगत-कीड़े-मकोड़ों से लेकर मनुष्य तक क्या है? यह भी यौगिक ही है। जीव मिला और कुछ पुदगल मिला, एक कीड़ा बन गया, एक पक्षी बन गया। एक पशु बन गया
और एक आदमी बन गया। मूल द्रव्य कोई नहीं है, सब यौगिक है। कहना चाहिए-जितना दिखाई दे रहा है और जो दृश्य जगत है, वह सारा का सारा जीव और पुद्गल का यौगिक स्वरूप है। न कोई शुद्ध जीव है और न कोई शुद्ध पुद्गल । यदि पुद्गल है तो वह जीव द्वारा छोड़ा हुआ पुद्गल है। सूक्ष्म पुद्गल हमें दिखाई नहीं देता।
कुछ दार्शनिकों ने माना-विश्व की रचना का मूल तत्त्व है पंचभूत। पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश- इन पांच महाभूतों से सृष्टि का निर्माण हुआ है। जैन दर्शन ने पांच भूतों को स्वीकृति नहीं दी। उसके अनुसार जीव और अजीव-इन दो के योग से सृष्टि का निर्माण हुआ है। इस योग में पृथ्वी भी है, पानी भी है, अग्नि भी है और वायु भी है किन्तु आकाश अलग पड़ जाता है। आकाश एक स्वतन्त्र द्रव्य है। वह इन चारों के साथ में नहीं आता, वह यौगिक नहीं है।
सारा संसार पुद्गलों और जीवों के योग से बनता है। दोनों का योग मिला और व्यंजन पर्याय घटित हो गया। व्यंजन पर्याय यानि प्रगट होने वाला पर्याय । गाय ने घास खाई और दूध बन गया, यह व्यंजन पर्याय है। प्रश्न हुआ-दूध कहां से आया? क्या दूध का अस्तित्व गाय में है? क्या दूध का अस्तित्व घास में है? अगर गाय में है तो घास कभी दूध नहीं देगा। उसका अस्तित्व न गाय में है और न घास में है किन्तु दोनों के योग में है। गाय और घास-दोनों का योग मिला और एक नया पर्याय बन गया। दूध हमारे सामने प्रस्तुत हो गया। ऐसे नाना प्रकार के योग बनते हैं,
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