________________
सृष्टिवाद / ५५
तत्त्व, एक भी अणु न नया जन्म लेता है और न पुराना नष्ट होता है। जितना था, उतना है और उतना ही रहेगा। अतीत में जितने पदार्थ थे, वर्तमान में भी वे हैं और अनन्त भविष्य में भी वे पदार्थ बराबर बने रहेंगे। वे न कम होंगे न अधिक। इसलिए विश्व कब बना? इस प्रश्न का कोई उत्तर दर्शन जगत के पास नहीं है और इसका आदि बिन्दु खोजा भी नहीं जा सकता।
चौथा प्रश्न है-विश्व कैसे बना?
जीव और अजीव का संयोग होता रहता है और उस संयोग ने इस सृष्टि का निर्माण किया है। प्रश्न होता है-दूध कैसे बना? गाय ने घास खाई और दूध बन गया। जितना विकास है, यह सारा यौगिक है। उसमें जीव और अजीव-इन दो तत्वों का योग है। इन दो का योग मिलता रहता है और वह गुणित होता चला जाता है। दो से चार, चार से आठ और आठ से सौलह-इस प्रकार वह गुणित होता चला जाता है।
पांचवां प्रश्न है-मूल तत्त्व क्या है? जीव और अजीव-ये दो मूल तत्त्व हैं।
जगत का जितना विस्तार है, वह जीव और अजीव के संयोग से हुआ है। उस विस्तार की शक्ति का नाम है व्यंजन पर्याय । पर्याय दो प्रकार का होता है-स्वभाव पर्याय और व्यंजन पर्याय। प्रत्येक पदार्थ में जो अपना-अपना परिणमन होता रहता है, वह है स्वभाव पर्याय और जो दो के योग से बनता है और प्रकट होता है, वह है व्यंजन पर्याय । दो का योग मिला, हाईड्रोजन-ऑक्सीजन मिला, पानी बन गया। पानी कोई मूल तत्त्व नहीं है। पानी यौगिक है। जितने द्रव्य यौगिक हैं, वे संयोग से मिलते हैं और बनते चले जाते हैं।
हमारे जगत का जो विस्तार है, वह यौगिक विस्तार है। मूल तत्व बहुत सिमटे हुए हैं। किन्तु इनका विस्तार इतना हो गया है कि हमें नाना द्रव्य दिखाई दे रहे हैं। प्रश्न होता है- मकान क्या है? वह कोई मूल द्रव्य नहीं है। ईंट, पत्थर, सीमेंट, लोहा- इनका योग मिला और मकान खड़ा हो गया। यह मिट्टी क्या है? यह पृथ्वी क्या है? कुछ प्राणी और कुछ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org