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सृष्टिवाद
बहुत प्राचीन काल से कुछ जिज्ञासाएं मनुष्य के मस्तिष्क में उभरती रही है, प्रश्न पूछे जाते रहे हैं और समाधान खोजा जाता रहा है। प्रश्न है-यह विश्व किसने बनाया? यह विश्व किससे बना? कब बना? कैसे बना? मूल तत्व क्या है? वह तत्व क्या है, जो निरन्तर परिवर्तन में अपरिवर्तित रहता है? यह पृथ्वी कब से है? यह आकाश कब से है? यह सौरमण्डल कब से है? यह प्राणीजगत कब से है? यह मनुष्य कब से है? ये प्रश्न मानव में उभरते रहते हैं। मनुष्य अपनी बुद्धि के द्वारा, अपनी अर्न्तदृष्टि के द्वारा इन प्रश्नों का समाधान खोजता रहा है। जैन-दर्शन ने भी इनका समाधान खोजा। एक साथ खोजा या धीमें-धीमें खोजा. यह विचार के इतिहास का विषय है किन्तु जैन दर्शन में इनका समाधान खोजा गया है।
पहला प्रश्न है-यह विश्व किसने बनाया?
जैन दर्शन ने इसका समाधान दिया--- विश्व को बनाने वाला कोई नहीं है।
दूसरा प्रश्न है- यह विश्व किससे बना? जीव और अजीव-ये दो तत्त्व हैं। इन दो तत्वों से यह विश्व बना
है
तीसरा प्रश्न है-यह विश्व कब बना?
इसका कोई अता-पता नहीं है। इसका आदि बिन्दु निकाला नहीं जा सकता। इसलिए नहीं निकाला जा सकता कि इस विश्व में जितने तत्त्व
पहले थे, उतने ही हैं, उतने ही रहेंगे। जीव और अजीव में से एक भी Jain Education International For Private & Personal Use Only
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