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जगत और ईश्वर / ५३
उपेक्षा करनी है, उसकी उपेक्षा करो। यह व्यवहार करो। यह है हमारी प्रत्याख्यान-प्रज्ञा। पहले ज्ञान करें। ज्ञ-प्रज्ञा का प्रयोग करें और फिर प्रत्याख्यान-प्रज्ञा का प्रयोग करें। इस उभयमुखी प्रवृत्ति के द्वारा हम उस बिन्दु पर पहुंच सकते हैं, जहां हम स्वयं परमात्मा और ईश्वर की अवस्था को उपलब्ध होंगे। ईश्वर हमसे भिन्न नहीं है। परमात्मा हमसे भिन्न नहीं है। हमारे भीतर हमारा ईश्वर विद्यमान है। हमारे भीतर हमारा परमात्मा विद्यमान है। हम ऐसा पुरुषार्थ करें, जिससे हमारा प्रभु, हमारा ईश्वर, हमारा परमात्मा प्रकट हो जाए और हम स्वयं सत्-चित्-आनन्दमय अपने अस्तित्व को प्राप्त करें।
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