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दार्शनिक दृष्टिकोण / ३७
ही रहेंगे। उतने ही थे। एक भी परमाणु, एक भी तत्त्व न तो नया पैदा होगा
और न जो है वह नष्ट होगा। जितने हैं, उतने ही रहेंगे। न कोई नया जन्मता है और न कोई पुराना मरता है। कुछ भी नहीं होता। जन्म और मृत्यु कुछ नहीं है। नया कुछ होता ही नहीं। केवल परिवर्तन, केवल रूपांतरण। यदि हम इस परिवर्तन को सत्य मानें तो वास्तविक सत्य नहीं होगा, अधूरा सत्य होगा, पूरा सत्य नहीं होगा। पूरा सत्य तब होगा कि परमाणु भी सत्य है, मिट्टी भी सत्य है और घड़ा भी सत्य है। अगर घड़े को ही सत्य मान लें तो घड़ा फूटा, सत्य कहां गया? ____एक संतरा है, केला है, आम है, सत्य है। सत्य इसलिए कि खाया और तृप्ति मिली। सत्य तो है, पर केवल वही सत्य है, ऐसा नहीं। संतरा खा लिया तो इसका मतलब है कि सत्य को भी खा लिया और सत्य समाप्त हो गया। केला समाप्त हुआ और सत्य भी समाप्त हो गया। आम खाया, आम समाप्त हुआ और सत्य भी समाप्त हो गया। यह सत्य तो है पर एकांगी सत्य है। अधूरा सत्य है। पूरा सत्य क्या है? केला समाप्त हो सकता है, क्योंकि वह एक अवस्था है। आम समाप्त हो सकता है, संतरा समाप्त हो सकता है पर परमाणु समाप्त नहीं होता।
गाय को दुहा। दूध निकला। वह गोरस है। दूध भी गोरस है । दूध में जामन दिया, वह भी गोरस है। दूध मिटा और दही बना। दही क्या है? वह भी गोरस है। दूध से दही बन गया, दूध मिटा, दही बना। पर गोरस दोनों हैं। दूध भी गोरस और दही भी गोरस । गोरस मिटा। बचा क्या? परमाणु बचे।
एक है मूल द्रव्य और दूसरा है मूल द्रव्य में होने वाला परिवर्तन । दोनों को सर्वथा अलग नहीं किया जा सकता। दोनों संयुक्त चलते हैं। वह द्रव्य भी है और उसमें होने वाला परिवर्तन भी है। परिवर्तन सत्य है, यह जानने वाली दृष्टि है पर्यायार्थिक नय। मूल द्रव्य सत्य है, यह जानने वाली दृष्टि है द्रव्यार्थिक नय। इन दो दृष्टियों से हम देखते हैं तब हमें पूर्ण सत्य का पता चलता है। कुछ दार्शनिक हैं, जो केवल द्रव्य को मानते हैं, पर्यायों को नहीं मानते। कुछ दार्शनिक ऐसे हैं जो केवल पर्यायों को मानते हैं,
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