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दार्शनिक दृष्टिकोण
सत्य क्या है, यह प्रश्न बहुत लम्बे समय से पूछा जाता रहा है। प्रत्येक दर्शन ने इस पर विचार किया और इसका समाधान देने का प्रयत्न किया। जैन दर्शन ने भी इस पर विचार किया, सत्य को देखने की दृष्टियां दी। प्रश्न है- क्या मिट्टी सत्य है या घड़ा सत्य है? प्रश्न है कि क्या रुई सत्य है या कपड़ा सत्य है? रुई से कपड़ा बनता है। रुई मिट जाती है, कपड़ा बनता है। मिट्टी मिटती है, घड़ा बनता है। सत्य क्या है? रुई सत्य या कपड़ा सत्य? मिट्टी सत्य या घड़ा सत्य? अब इस सत्य को समझने के लिए दृष्टिकोण चाहिए। जब दृष्टिकोण सही नहीं होता, तब समझा नहीं जा सकता। आज कपड़ा है। उसे पहना गया। वह पुराना होगा, एक दिन फट जाएगा और कपड़ा भी समाप्त हो जाएगा। घड़ा भी फूट जाएगा, समाप्त हो जाएगा। कपड़ा कहां गया? घड़ा कहां गया? क्या सदा के लिए समाप्त हो गया? क्या सब कुछ समाप्त हो गया?
जैन दर्शन ने कहा कि दो दृष्टियों से देखो। एक दृष्टि का नाम है द्रव्यार्थिकदृष्टि और दूसरी का नाम है पर्यायार्थिकदृष्टि। एक दृष्टि का नाम है निश्चयदृष्टि और दूसरी दृष्टि का नाम है व्यवहारदृष्टि । द्रव्य की दृष्टि से देखो और पर्याय की दृष्टि से देखो। दोनों दृष्टियों से सत्य को देखो तो सत्य का पता चलेगा। एक दृष्टि से देखोगे तो सत्य का पता नहीं चलेगा। मिट्टी थी। घड़ा बना। घड़ा भी फूट गया। पर परमाणु समाप्त नहीं हुआ। मिट्टी भी परमाणु से बनी। घड़ा भी परमाणु से बना । मिट्टी भी एक अवस्था है । घड़ा भी एक अवस्था है। दोनों मिट गए। परमाणु नहीं मिटा। जैन दर्शन ने एक सिद्धान्त दिया कि इस जगत में जितने तत्त्व हैं, उतने
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