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भारतीय दर्शनों में जैन दर्शन का स्थान / ३५
अपेक्षा से ग्रहण करो । सत्य सापेक्ष होता है। एक सत्यांश के साथ लगे या छिपे अनेक सत्यांशों को ठुकराकर कोई उसे पकड़ना चाहे तो वह सत्यांश भी उसके सामने असत्यांश बनकर आता है ।'
दूसरों के प्रति ही नहीं उनके विचारों के प्रति भी अन्याय मत करो । अपने को समझने के साथ-साथ दूसरो को भी समझने की भी चेष्टा करो । यही है अनेकान्तदृष्टि, यही है अपेक्षावाद और इसी का नाम है बौद्धिक अहिंसा । इसके विकास में जैन दर्शन का महत्वपूर्ण योगदान है।
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