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________________ जैन धर्म : प्रागैतिहासिक काल / २५ है। पहला प्रश्न होगा कि जैन धर्म कब से है? इसे किसने चलाया? इसका सीधा-सा उत्तर होगा कि जैन धर्म के प्रवर्तक हैं भगवान महावीर और ढाई हजार वर्ष पहले महावीर ने जैन धर्म का प्रवर्तन किया। तो फिर दूसरा प्रश्न होगा कि क्या इससे पहले जैन धर्म नहीं था? तो कहना होगा कि था। महावीर से पहले भगवान पार्श्व जैन धर्म के प्रवर्तक थे। महावीर से ढाई सौ वर्ष पहले भगवान पार्श्व ने जैन धर्म का प्रवर्तन किया। भगवान महावीर और भगवान पार्श्व, यह जो तीन हजार वर्ष का समय है, इस अवधि में दो तीर्थंकर हुए, जो आज ऐतिहासिक माने जाते हैं। इतिहास की सीमा में जैन धर्म के दो तीर्थंकर मान्य हुए हैं। फिर प्रश्न होता है-क्या जैन धर्म की सीमा यही है या इसके भी पीछे जाती है? वह सीमा इसके पीछे भी जाती है। पर यह काल इतिहास-काल नहीं है। उसे प्रागैतिहासिक काल माना जाता है। जैन-परम्परा के अनुसार भगवान पार्श्व से पहले बाईस प्रवर्तक और तीर्थंकर हो चुके हैं। पर इतिहास में उन्हें मान्यता नहीं मिली। वे प्रागैतिहासिक हैं। इन बाईस तीर्थंकरों ने, जिनमें सबसे पहले तीर्थंकर हैं भगवान ऋषभ, उनका काल बहुत दूर चला जाता है, हजारों लाखों-करोड़ों वर्षों की अवधि से पहले उनका जन्म हुआ। और तब हुआ, जब मानव समाज बना नहीं था। आदिम-युग चल रहा था। लोग जंगलों में रहते थे। घर नहीं बने थे। कपड़े नहीं बने थे। खेती शुरू नहीं हुई थी। बर्तनों का निर्माण नहीं हुआ था। न शिल्प बना, न कला का विकास हुआ और न राज्य बना। प्रारम्भिक युग चल रहा था। उस समय में भगवान ऋषभ का जन्म हआ। भगवान ऋषभ समाजव्यवस्था के प्रवर्तक थे। उन्होंने समाज का निर्माण किया, सामूहिक जीवन जीना सिखाया, खेती करना सिखाया, शिल्प का विकास किया, कला सिखायी। भगवान ऋषभ से पहले लिपि नहीं थी। ऋषभ ने लिखना सिखाया। ऋषभ से पहले कलाओं का ज्ञान नहीं था। उन्होंने दूसरों को कलाएं सिखायीं। समाज को जितनी अपेक्षाएं थीं, ऋषभ ने उन अपेक्षाओं को पूरा किया। समाज की व्यवस्था और साथ-साथ राज्य की व्यवस्था। न कोई राजा था। न शासन था। न कोई दंडनीति थी। भगवान ऋषभ ने राज्य का सूत्रपात किया और राज्य की सारी व्यवस्था की। समाज के पहले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003070
Book TitleJain Darshan ke Mul Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2001
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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