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जैन-धर्म : प्रागैतिहासिक काल
आज का युग अणु-युग है। अणु-अस्त्रों का युग है। मनुष्य हिंसा से भयभीत है। मन में एक आतंक है । इस स्थिति में वह अहिंसा की खोज कर रहा है। उसका मूल्यांकन कर रहा है। एक ओर अणु-अस्त्रों का युग है तो दूसरी और अहिंसा का युग। यह अहिंसा की खोज का युग है।
विज्ञान के क्षेत्र में आज सापेक्षवाद की चर्चा है। आइंस्टीन के बाद सापेक्षवाद को बहुत मूल्य मिला है। मनुष्य में एक ओर बहुत आग्रह है। जितनी राजनीतिक प्रणालियां हैं, उनमें अपनी-अपनी पकड़ और अपनाअपना आग्रह है। दूसरी ओर सापेक्षवाद का सिद्धांत है। इन समस्याओं और परिस्थितियों के बीच हम जैनदर्शन को पढ़ें।
जैन-दर्शन ने अहिंसा का सिद्धांत दिया और उसका व्यावहारिक मार्ग भी बताया। जैन-दर्शन ने सापेक्षवाद का सिद्धान्त दिया और उसका व्यावहारिक मार्ग भी बताया। एक ओर संयुक्त राष्ट्रसंघ में निःशस्त्रीकरण की बहुच चर्चा होती है, दूसरी ओर शस्त्रीकरण बढ़ रहा है। इस संदर्भ में जैन-दर्शन को पढ़ना बहुत मूल्यवान है । शायद भारतीय दर्शनों में और जहां तक मैं सोचता हूं, पाश्चात्य दर्शन में भी नि:शस्त्रीकरण पर सबसे पहले भगवान महावीर ने अपना स्वर मुखर किया था। उन्होंने शस्त्रीकरण के विरोध में कुछ सिद्धान्त प्रस्तुत किये, निर्देश दिये-अहिंसा में विश्वास करने वाला व्यक्ति शस्त्रों का उत्पादन और संयोजन-दोनों न करे। यह एक बहुत क्रान्तिकारी तथा दूरदर्शिता की बात थी। ___ ये सारी घटनाएं वर्तमान समस्या के सन्दर्भ में बहुत महत्त्वपूर्ण बनती हैं। इसलिए इन संदर्भो में जैन-धर्म को पढ़ना आज ज्वलंत आवश्यकता
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